शुक्रवार, 6 अक्तूबर 2017

असली यदुवंशी (अहीर बनाम यदुवंश )

                                                         
ब्रज का इतिहास भाग -2 श्री कृष्णदत्त वाजपेयी ने मथुरा गजेटियर 1911 मे पृष्ठ 106-14 के अनुसार लिखा है की -"अहीर अपना उत्पत्ति स्थान मथुरा को बतलाते है |उनका कहना है की वे कृष्ण के समय मे वृंदावन के ग्रामीण बनिया थे |ज़िनके पास 1000 से अधिक गाये होती थी उनको नन्दवंश कहा जाता था ,ज़िनके पास कम होती थी उनको ग्वालवंश कहा जाता था |मथुरा मे मुख्यत :ग्वालवंश थे |'आगे लिखते है की कृष्ण के साथ संबंध्द जातिया मथुरा की भाषा और संस्कृती से विशेष संबंध रखती है ,उन जातियो मे अहीर -आभीर भी आते है | पौराणिक साहित्य मे इनकी मिश्रित उत्पत्ति बताई गई है |अहीरो को वायूपुराण मे मलेच्छ कहा गया है |पंतजली ने उनका संबंध शुद्रो से जोडा है |मनु ने अहीर को ब्रह्मण पिता और अम्बाष्ठ स्त्री से उत्पन्न माना है |अहीर जाती के बारे मे पौराणिक ,एतिहासिक जितने भी वर्णन या उल्लेख मिलते है प्राय: सभी मे स्पष्टत:अहीर जाती यादव ,यदुवंशी से भिन्न जाती है ,इसका प्रत्यक्ष प्रमाण सामाजिक जीवन मे भी हमेशा से मौजुद रहा है की यदुवंशीयो का अहीर जाती से किसी भी प्रकार (रिश्ते ,नाते ,विवाह संबंध ,व्यवहारिक चाल चलन )का कोई भी सामाजिक व्यवहारिक संबंध नहीं रहा है |प्राचीन काल से ही सामाजिक जीवन दोनो का भिन्न रहा है                                


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श्री कृष्ण मेघाडम्बर छत्र जेसलमेर में सुरक्षित हे
अहीर बनाम यदुवंशी भाग -2.                                          

     एक और तो अहीर अपनी उत्पत्ति यदुवंश जैसे क्षत्रिय राजवंश से जोड रहे है --यदुवंशी राजा आहुक से उत्पन्न है ,यदुवंशी राजा देवमीढ की दुसरी पत्नी वैश्यवर्णा से उत्पन्न है ,कृष्ण वंश मे उत्पन्न है आदी |जबकी ये बात सार्वभौमिक सत्य है की कृष्ण के पिता वृष्णीवंशी (यदुवंश की शाखा )वासुदेव थे तथा माता अंधकवंशी (यदुवंश की शाखा )देवकी थी ,इस तथ्य को प्रमाणित करने की आवश्यकता नहीं है ,तो फिर ये आभीर जाती से उत्पन्न कहा से और कब से हुए ?क्या ये आहुक ,देवमीढ ,कृष्ण आदी जो यदुवंशी क्षत्रिय थे ,ये भी आभीर थे ?होने चाहिए |तो मे कहना चाहूँगा की एतिहासिक पौराणिक तथ्य को बिना शोध के बिना सोचे विचारे नहीं लिखना चाहिए |तथ्यहीन अप्रमाणिक उल्टा सिधा लिखने से वास्तविक इतिहास बदल नहीं जाता और न किसी दुसरे के इतिहास को चुराने से अपना बन जाता है |           कोई भी इतिहासकार यह निश्चित नहीं कर सकता है की अहीर (वर्तमान छद्म यादव )यदुवंश से उत्पन्न है सभी ने अनुमानत:     विवरण लिखा है ,क्योकि अहीर शब्द केवल कृष्ण काल से ही आया है लेकिन इनकी उत्पत्ति का प्रामाणिक और विश्वसनिय इतिहास उस काल मे भी नहीं मिलता है
 ब्रज का इतिहास भाग -2 श्री कृष्णदत्त वाजपेयी

123 टिप्‍पणियां

  1. प्रियास इत् ते मघवन् अभीष्टौ
            नरो मदेम शरणे सखाय:।
    नि तुर्वशं नि यादवं शिशीहि
            अतिथिग्वाय शंस्यं करिष्यन् ।।
    (ऋग्वेद ७/१९/८ में भी यही ऋचा
    अथर्ववेद में भी (काण्ड २० /अध्याय ५/ सूक्त ३७/ ऋचा ७)
    ________________________________________
    हे इन्द्र !  हम तुम्हारे मित्र रूप यजमान
    अपने घर में प्रसन्नता से रहें; तथा
    तुम अतिथिगु को सुख प्रदान करो ।
    और तुम तुर्वसु और यादवों को क्षीण करने वाले बनो। अर्थात् उन्हें परास्त करने वाले बनो !
    ऋग्वेद में भी यही ऋचा है ; इसका अर्थ भी देखें :- हे ! इन्द्र तुम अतिथि की सेवा करने सुदास को सुखी करो ।
    और तुर्वसु और यदु को अपने अधीन करो ।

    और भी देखें यदु और तुर्वसु के प्रति पुरोहितों की दुर्भावना अर्वाचीन नहीं अपितु प्राचीनत्तम है ।...
    देखें---
    अया वीति परिस्रव यस्त इन्दो मदेष्वा ।
    अवाहन् नवतीर्नव ।१।
    पुर: सद्य इत्थाधिये दिवोदासाय , शम्बरं अध त्यं तुर्वशुं यदुम् ।२।
    (ऋग्वेद ७/९/६१/ की ऋचा १-२)
    हे  सोम ! तुम्हारे किस रस ने दासों के निन्यानवे पुरों अर्थात् नगरों) को तोड़ा था ।
    उसी रस से युक्त होकर तुम  इन्द्र के पीने के लिए प्रवाहित हो ओ। १।
    शम्बर के नगरों को तोड़ने वाले  ! सोम रस ने ही  तुर्वसु की सन्तान तुर्को तथा यदु की सन्तान यादवों को  शासन (वश) में किया ।
    यदु को ही ईरानी पुरातन कथाओं में यहुदह् कहा
    जो ईरानी तथा बैबीलॉनियन संस्कृतियों से सम्बद्ध साम के वंशज- असीरियन जन-जाति के सहवर्ती यहूदी थे।
    असुर तथा यहूदी दौनो साम के वंशज- हैं 
    भारतीय पुराणों में साम सोम हो गया ।
    यादवों से घृणा चिर-प्रचीन है  देखें--और भी
    ___________________________
    सत्यं तत् तुर्वशे यदौ विदानो अह्नवाय्यम् ।
    व्यानट् तुर्वशे शमि । (ऋग्वेद ८/४६/२७)
    हे इन्द्र! तुमने यादवों के प्रचण्ड कर्मों  को सत्य (अस्तित्व) में मान कर संग्राम में अह्नवाय्यम् को प्राप्त कर डाला ।
    अर्थात् उनका हनन कर डाला ।
    अह्नवाय्य :- ह्नु--बा० आय्य न० त० ।
    निह्नवाकर्त्तरि ।
    “सत्यं तत्तुर्वशे यदौ विदानो अह्नवाय्यम्” ऋ० ८, ४५, २७ अथर्ववेद तथा ऋग्वेद में यही ऋचांश बहुतायत से है ।
    ________________________________________

    किम् अंगत्वा मघवन् भोजं आहु: शिशीहि मा शिशयं
    त्वां श्रृणोमि ।।
    अथर्ववेद का० २०/७/ ८९/३/
    हे इन्द्र तुम भोगने वाले हो ।
    तुम शत्रु को क्षीण करने वाले हो । मुझे क्षीण न करो ।

    वेद में अश्लीलता भी है दृष्टव्य है ।
    परन्तु वेदों मे प्राचीनता के भी दर्शन हैं ।
    तद् इन्द्राव आ भर येना दसिष्ठ कृत्वने
    द्विता कुत्साय शिश्नथो नि चोदय ! है कि ये असीरियन जन-जाति से सम्बद्ध सेमेटिक यहूदी यों के पूर्वज यहुदह् ही थे ।
    यद्यपि यदु और यहुदह् शब्द की व्युत्पत्तियाँ समान है ।
    अर्थात् यज्ञ अथवा स्तुति से सम्बद्ध व्यक्ति ।
    यहूदीयों का सम्बन्ध ईरान तथा बेबीलोन से भी रहा है ।
    ईरानी असुर संस्कृति में  दाहे शब्द दाहिस्तान के सेमेटिक मूल के व्यक्तियों का वाचक है।
    यदु एेसे स्थान पर रहते थे।
    जहाँ ऊँटो का बाहुल्य था ।
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    1. कितना झूठ बोलोगे एक तो तुम्हारे अर्थ बिल्कुल गलत है, लोगो को अर्थ नही पता तो कुछ भी लिख दोगे ये तुम्हारी और तुम्हारे परिवार की मानसिकता और सोच और संस्कार को दर्शाता है!

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    2. कितना झूट फैलाओगे ८/४६/२७ का मंत्र वो है ही नही जो तूने लिखा है मैं बताता हु क्या है सुन दुष्ट.

      यो म॑ इ॒मं चि॑दु॒ त्मनाम॑न्दच्चि॒त्रं दा॒वने॑ । अ॒र॒ट्वे अक्षे॒ नहु॑षे सु॒कृत्व॑नि सु॒कृत्त॑राय सु॒क्रतु॑: ॥

      भावार्थभाषाः -ईश्वर से लोग याचना करते हैं, परन्तु उसके दान लोग नहीं जानते हैं, उसकी कृपा और दान अनन्त है, वह सुवर्णमय रथ देता है, जो शरीर है, इससे जीव सब कुछ प्राप्त कर सकता है, उसको धन्यवाद दो ॥२४॥

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    3. एक भी मंत्र सही नही है तेरा मानता हु सनातनी अपने कर्मो अपने मार्ग और अपने पूर्वजों और अपने पहचान से दूर हो रहे है इसका मतलब ये नहीं की तुझ जैसे दुष्ट कुछ भी लिख देंगे अभी हम जिंदा है दुनिया को सत्य दिखाने के लिए. जय श्री राम जय सनातन!

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    4. Ye sab yadav ko nicha dikhaneke ke lie salo ne ulta pulta likhate hai kahi bhagawat geeta me nahi likha gaya hai ye sab sala phalatu ke bakawas karata hai

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    5. Lode sale tum log yadavo se jalte ho suvaro aur unme fut dalte ho aur sale up Bihar Panjab aur jagah ke yadavo se ye jalan rkhta he Tu aur Tu vhi Yadav he Jo sale yaduvansh ke sraf me mar Jana Chahiye tha par kinda bacha he yadavo me fut dalne ko aur sach bolu Tu mugalo ki vansaj Hoga Yadav Nahi he Tu

      Duniya janti he ahir yaduvansh hi Sri Krishna ke vansaj he par sale mugal vanshaj Tu Apne dimag ki ultiya. Paros Raha he suvar land sale Teri bat loda manega koi Jo itihas aur ved puran Gita kah rahi vo hi duniyan manti he samjha

      Jai Shri Krishna
      Jai yaduvansh

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    6. Tum farji yadav ho tum asli me abhir ho jo ki chor the sada se
      Asli yaduvanshi rajput hote hai Jadon Bhati jadeja
      Chartra yadavpati bhati rajput

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    7. teri ma sayad jadon ya jadeja ke pass he
      ja use pehle le
      fir muglo ke salo ki tarif karna bhadve dalle

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  2. यदु को दास अथवा असुर कहना सिद्ध करता है कि ये असीरियन जन-जाति से सम्बद्ध सेमेटिक यहूदी यों के पूर्वज यहुदह् ही थे ।
    यद्यपि यदु और यहुदह् शब्द की व्युत्पत्तियाँ समान है ।
    अर्थात् यज्ञ अथवा स्तुति से सम्बद्ध व्यक्ति ।
    यहूदीयों का सम्बन्ध ईरान तथा बेबीलोन से भी रहा है ।
    ईरानी असुर संस्कृति में  दाहे शब्द दाहिस्तान के सेमेटिक मूल के व्यक्तियों का वाचक है।
    यदु एेसे स्थान पर रहते थे।
    जहाँ ऊँटो का बाहुल्य था ।
    🐫🐪🐫🐪🐫🐪🐫🐪🐫🐪🐫🐪🐫🐪🐫🐪🐫🐪🐫🐪🐫🐪🐫🐪🐫🐪🐫🐪🐫🐫
    ऊँट उष्ण स्थान पर रहने वाला पशु है ।
    (उष + ष्ट्रन् किच्च )
    ऊषरे तिष्ठति इति उष्ट्र (ऊषर अर्थात् मरुस्थल मे रहने से ऊँट संज्ञा )।
    (ऊँट) प्रसिद्धे पशुभेदे स्त्रियां जातित्त्वात् ङीष् । “हस्तिगोऽश्वोष्ट्रदमकोनक्षत्रैर्यश्च जीवति” “नाधीयीताश्वमारूढ़ो न रथं न च हस्तिनम्

    देखें---ऋग्वेद में
    ________________________________________
    शतमहं तिरिन्दरे सहस्रं वर्शावा ददे ।
    राधांसि यादवानाम्
    त्रीणि शतान्यर्वतां सहस्रा दश गोनाम् ददुष्पज्राय साम्ने ४६।
    उदानट् ककुहो दिवम् उष्ट्रञ्चतुर्युजो ददत् ।
    श्रवसा याद्वं जनम् ।४८।१७।
    यदु वंशीयों में परशु के पुत्र तिरिन्दर से सहस्र संख्यक धन मैने प्राप्त किया !
    ऋग्वेद ८/६/४६
    ______________________________________
    यह स्थान इज़राएल अथवा फलस्तीन ही है ।
    ब्राह्मणों का आगमन यूरोप स्वीडन से मैसॉपोटमिया सुमेरो-फोनियन के सम्पर्क में रहते हुए हुआ है ।
    सुमेरियन पुरातन कथाओं में बरमन/बरम (Baram) पुरोहितों को कहते है । ईरानी मे बिरहमन तथा जर्मनिक जन-जातियाँ में ब्रेमन ब्रामर अथवा ब्रेख्मन
    ब्राह्मण शब्द का तद्भव है।
    पुष्य-मित्र सुंग के अनुयायी ब्राह्मणों ने अहीरों( यादवों से सदीयों से घृणा की है )उन्हें ज्ञान से वञ्चित किया और उनके इतिहास को विकृत किया और उन्हें दासता की जञ्जीरों में बाँधने की कोशिश भी की परन्तु अहीरों ने दास (गुलाम) न बन कर दस्यु बनना स्वीकार किया ।
    ईरानी भाषा में दस्यु तथा दास शब्द क्रमश दह्यु तथा दाहे के रूप में हैं ।

    ऋग्वेद के दशम् मण्डल के ६२वें सूक्त की १० वीं ऋचा में यदु और तुर्वसु को स्पष्टत: दास के रूप में सम्बोधित किया गया है।
    उत् दासा परिविषे स्मद्दिष्टी ।
    गोपरीणसा यदुस्तुर्वश्च च मामहे ।।
    (ऋग्वेद १०/६२/१०)
    यदु और तुर्वसु नामक दौनो दास जो गायों से घिरे हुए हैं
    हम उन सौभाग्य शाली दौनों दासों की प्रशंसा करते हैं ।
    यहाँ पर गोप शब्द स्पष्टत: है ।
    🐂जो अहीरों का वाचक है ।
    अमरकोश में जो गुप्त काल की रचना है । उसमें अहीरों के अन्य नाम-  पर्याय वाची रूप में वर्णित हैं।
    आभीर पुल्लिंग विशेषण संज्ञा
    गोपालः 
    समानार्थक: १-गोपाल,२-गोसङ्ख्य,३-गोधुक्,४-आभीर,५-वल्लव,६-गोविन्द,७-गोप 
    (2।9।57।2।5 अमरकोशः)
    कामं प्रकामं पर्याप्तं निकामेष्टं यथेप्सितम्. गोपे गोपालगोसंख्यगोधुगाभीरवल्लवाः॥ 
    पत्नी : आभीरी 
    सेवक : गोपग्रामः 
    वृत्ति : गौः 
    : गवां-स्वामिः गायों का स्वामी ।
    और यदु पुराणों की बात करें तो महाभारत का खिल-भाग हरिवंश पुराण में वसुदेव को गोप रूप में वर्णित किया गया है ।
    ________________________________________
    इति अम्बुपतिना प्रोक्तो वरुणेन अहमच्युत गवां कारणत्वज्ञ :सतेनांशेन जगतीं गत्वा गोपत्वं एष्यति।

    यहाँ दास शब्द का अर्थ जन-जाति विशेष के रूप में वर्णित है।
    न कि गुलाम के अर्थ में ।
    असुर का अर्थ भी ईरानी भाषा में पूज्य तथा शक्ति सम्पन्न है।
    और ईरानी भाषा में देव( 'दएव' ) का अर्थ लम्पट कामुक तथा दुष्ट आदि है ।
    अवेस्ता ए झन्द ईरानी धर्म-ग्रन्थ में दस्यु का अर्थ श्रेष्ठ तथा दक्ष है  ।
    संस्कृत साहित्य में दस्यु :- डाँकू अथवा डकैत Daicoit को कहते है ।
    और चोर और डकैत Daicoit में जमीन आसमान का अन्तर है ।
    डकैतों ने अपने शत्रुओं को ही लूटा किसी गरीब़-लाचार को नहीं !
    यह इतिहास गवाह है ।
    १९८७ में डकैत हिन्दी फिल्म इसी सच्चाई पर आधारित है ।

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    1. Are bhosdi ke aapan utapatti kahe nhi btaye ..asal me brahmano se jyada dharm krishna jante the..isiliye puje gye ..aor ..indra ko bhi hra diye..... Tumhari ..gand kahe jal rhi hai......
      L

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    2. Are bhosdi ke aapan utapatti kahe nhi btaye ..asal me brahmano se jyada dharm krishna jante the..isiliye puje gye ..aor ..indra ko bhi hra diye..... Tumhari ..gand kahe jal rhi hai......
      L

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    3. Idiot kaha se padha hai ye sab kuchh bhi bol dete ho ja ja ke acche se hamlogo ka itihas padh ankhe khul jayengi teri

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    4. Abe tum bda rigwed likh rhe ho
      Yadav ko ahir swayam indra dev ne hi bola tha govardhan leela k samay
      Or ha mahabharat ache se dekho or pdho
      Ho ske to kuch new research aaye h usko bhi pdho

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    5. Maine puri mahabharat padhi hai aur mujhe kahi bhi iska ullekh nahi mila, kya kripaya aap bata sakte hai ki kis parva mai indra ne yadavo ko ahir kehne ka ullekh kiya hai?

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  3. अर्थात्   ऋग्वेद के अष्टम् मण्डल के सूक्त संख्या ९६ के श्लोक
    १३, १४,१५, पर असुर अथवा दास कृष्ण का युद्ध इन्द्र से हुआ है ।"
    _______________________________________
    " आवत् तमिन्द्र शच्या धमन्तमप स्नेहितीर्नृमणा अधत्त।द्रप्सम पश्यं विषुणे चरन्तम् उपह्वरे नद्यो अंशुमत्या: न भो न कृष्णं अवतस्थि वांसम् इष्यामि।।
    वो वृषणो युध्य ताजौ ।।१४।।
    अध द्रप्सो अंशुमत्या उपस्थे$धारयत् तन्वं तित्विषाण: विशो अदेवीरभ्या चरन्तीर्बृहस्पतिना
    युज इन्द्र: ससाहे ।। १५।।
    _______________________________________
    अर्थात् कृष्ण नामक असुर अंशुमती अर्थात्  यमुना  नदी के तटों पर दश हजार सैनिको के साथ निवास करता है ,उसे अपनी बुद्धि-बल से इन्द्र ने खोज लिया है ! और उसकी सम्पूर्ण सेना (गोप मण्डली) को इन्द्र ने नष्ट कर दिया है ।
    आगे इन्द्र कहता है :--कृष्ण को मैंने देख लिया है ,जो  यमुना नदी के एकान्त स्थानों पर घूमता रहता है । __________________________________________
    "कृष्ण के पूर्वज यदु को  वेदों में पहले ही शूद्र घोषित कर दिया " तो कृष्ण भी शूद्र हुए ऋग्वेद में तो कृष्ण को असुर कहा ही है ।
    क्योंकि वैदिक सन्दर्भों में जो दास अथवा असुर कहे गये हैं । लौकिक संस्कृत में उन्हें शूद्र कहा गया है।
    मनु-स्मृति का यह श्लोक प्रमाण है । जो पुष्यमित्र सुंग ई०पू०१८४ के समकक्ष निर्मित है ।
    ______________________________________
    शर्मा देवश्च विप्रस्य वर्मा त्राता भूभुज:
    भूतिर्दत्तश्च वैश्यस्य दास शूद्रस्य कारयेत् ।।
    अर्थात् विप्र(ब्राह्मण) के वाचक शब्द शर्मा तथा देव हों,
    तथा क्षत्रिय के वाचक वर्मा तथा त्राता हों ।और वैश्य के वाचक भूति तथा दत्त हों तथा दास शूद्र का वाचक हो ।
    __________________________________________
    कृष्ण का सम्बन्ध मधु नामक असुर से स्थापित कर दिया है ।और यादव और माधव पर्याय रूप में हैं ।
    यादवों में मधु एक प्रतापी शासक माना जाता है । यह इक्ष्वाकु वंशी राजा दिलीप द्वितीय का अथवा उसके उत्तराधिकारी दीर्घबाहु का समकालीन रहा है , मधु के गुजरात से लेकर यमुना तट तक के स्वामी होने का वर्णन है ।  प्राय: मधु को `असुर`, दैत्य, दानव आदि कहा गया है ।
    साथ ही यह भी है कि मधु बड़ा धार्मिक एवं न्यायप्रिय शासक था । मधु की स्त्री का नाम कुंभीनसी था, जिससे लवण का जन्म हुआ ।
    लवण बड़ा होने पर लोगों को अनेक प्रकार से कष्ट पहुँचाने लगा ।
    लवण को अत्याचारी राजा कहा गया है । इस पर दु:खी होकर कुछ ऋषियों ने अयोध्या जाकर श्री राम से सब बातें बताई और उनसे प्रार्थना की कि लवण के अत्याचारों से लोगों को शीघ्र छुटकारा दिलाया जाय । अन्त में श्रीराम ने शत्रुघ्न को मधुपुर जाने की आज्ञा दी  लवण को मार कर शत्रुघ्न ने उसके प्रदेश पर अपना अधिकार किया ।
    पुराणों तथा वाल्मीकि रामायण के अनुसार मधु के नाम पर मधुपुर या मधुपुरी नगर यमुना तट पर बसाया गया ।
    यद्यपि अवान्तर काल में पुष्यमित्र सुंग ई०पू०१८४ के अनुयायी ब्राह्मण समाज ने वाल्मीकि-रामायण में बहुत सी काल्पनिक व विरोधाभासी कथाओं का समायोजन कर दिया ।
    वाल्मीकि-रामायण में वर्णन है कि
    इसके आसपास का घना वन `मधुवन` कहलाता था । मधु को लीला नामक असुर का ज्येष्ठ पुत्र लिखा है और उसे बड़ा धर्मात्मा, बुद्धिमान और परोपकारी राजा कहा गया है ।
    मधु ने शिव की तपस्या कर उनसे एक अमोघ त्रिशूल प्राप्त किया । निश्चय ही लवण एक शक्तिशाली शासक था ।
    किन्तु श्री कृष्ण दत्त वाजपेयी के मतानुसार 'चन्द्रवंश की 61 वीं पीढ़ी में हुआ उक्त 'मधु' तथा लवण-पिता 'मधु' एक ही थे अथवा नही, यह विवादास्पद है ।
    🐃🐃🐃🐃🐃🐃🐃🐃🐃🐃🐃🐃🐃🐃🐃
    परन्तु ऐतिहासिक प्रणाम साक्षी हैं कि यहूदीयों का असीरियन जन-जाति से सेमेटिक होने से सजातीय सम्बन्ध है ।
      अत: यादवों से असुरों के जातीय सम्बन्ध हैं । असीरियन जन-जाति को ही भारतीय पुराणों में असुर कहा है ।
    जिन्हें भारतीय पुराणों में असुर कहा गया है वह यहूदीयों के सहवर्ती तथा सजातीय असीरियन लोग हैं ।
    साम अथवा सोम शब्द हिब्रू एवं संस्कृत भाषा में समान अर्थक हैं ।
    जिसके आधार पर सोम वंश की अवधारणा की गयी
    जिसे भारतीय पुराणों में चन्द्र से जोड़ कर काल्पनिक पुट दिया गया है ।
    योगेश कुमार'रोहि' के शोध पर आधारित असुरों का मैसॉपोटमिया की पुरातन कथाओं में एक परिचय :-
    हिन्दू धर्मग्रन्थों में असुर वे लोग हैं जो 'सुर' (देवताओं) से संघर्ष करते हैं।
    धर्मग्रन्थों में उन्हें शक्तिशाली, अतिमानवीय, असु राति इति असुर: अर्थात् जो प्राण देता है, वह असुर है ।
    इस रूप में चित्रित किया गया है
    'असुर' शब्द का प्रयोग ऋग्वेद में लगभग १०५ बार हुआ है। उसमें ९० स्थानों पर इसका प्रयोग 'असु युक्त अथवा प्राण -युक्त के अर्थ में किया गया है ।
    और केवल १५ स्थलों पर यह 'देवताओं के शत्रु' का वाचक

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    1. Abe Teri bahan ki chut saale apna number aur pata bata

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    2. Kuch bhi likha hai
      Mahabharat mai yadav, vrishni aur andhaka ko mahan kshatriya bataya gaya hai woh bhi bohot baar. Ye sab apne man se kuch bhi mat likha karo.

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    3. Rajputs jabhi muslimo ke put kabhi angeroj ke put ban jaate hai.Ab YADAv banna chhate hsi .yeh mauka parst jaati hai.

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    4. लगता है ये सब तुम्हारे ग्रंथ में लिखा है और इन सब बातो तो तुम्हारे परिवार के लोग फॉलो करते है, वरना सनातन धर्म के किसी वेद में ऐसा कुछ नही लिखा जो तू बता रहा

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    5. Kya chutiya jaise baat karte ho bhutni yadavo ko kshtriya hai tum log bamsef ke gand me Hale huye ho tum log dalal ho murko dhag se itihass pata hai nahi chale ho

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  4. Thanks Bhai Yogesh Ji .Bhai k lekho ka jawab de.kya rajput hone k dambh bharne wale ( ab yadav banane ke liye betab) kya vedo ( rigged) se bhi prachin koi praman hai.aheer hi yadav hai baki isi se nikali shakhaye

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    1. प्रोत्साहन हेतु धन्यवाद यादवेन्द्र दत्त जी !

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    2. Yadav to mahan chandravanshi kshatriya h...jara bramhanvad pr dimak lgaoo aur ye v btao Hindu dhrm ka durbhaagya Kon h lakho logo ko jisne daba KR rkha bhikh maang kr aj bde bn rhe h ye sb btaoo

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  5. पुरोहितों को बकवास लिखने की आदत गयी नहीं उसी का नमुना वाजपेई है. पैसे लेकर गंदगी तो कोई भी करेगा.. शुक्र करो कि अहिर खुद को यादव मानने लगे वरना न तुम होते न तुम्हारी बकवास. उस समय तुम्हारे पुरवज क्या कर रहे थे इस पर भी तो लिखो.

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  6. पुरोहितों को बकवास लिखने की आदत गयी नहीं उसी का नमुना वाजपेई है. पैसे लेकर गंदगी तो कोई भी करेगा.. शुक्र करो कि अहिर खुद को यादव मानने लगे वरना न तुम होते न तुम्हारी बकवास. उस समय तुम्हारे पुरवज क्या कर रहे थे इस पर भी तो लिखो.

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  7. पुरोहितों को बकवास लिखने की आदत गयी नहीं उसी का नमुना वाजपेई है. पैसे लेकर गंदगी तो कोई भी करेगा.. शुक्र करो कि अहिर खुद को यादव मानने लगे वरना न तुम होते न तुम्हारी बकवास. उस समय तुम्हारे पुरवज क्या कर रहे थे इस पर भी तो लिखो.

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    1. योगेन्देर अन्धेरी जी ।अगर ये राजपूत हे ।तो एनके राज्य चिन्ह मे भेड़ और गाय क्यू हे जबाब दे ।

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  8. ये राजपूत भ्रामक प्रचार करने में लगे है .....अहीरों के पास एक विरासत है और हैम ही असली यादव है पूरा देश जानता है यादव कोन है ....राजपूत तो अग्नि से उत्त्पन्न हुए हुए है आज उन तेजस्वी ब्राह्मणों के वंसज कहा है जो आग से इंसान पैदा कर दे ....सच्चाई ये है कि राजपूत बाहरी लोग है इन्हें अग्नि संस्कार करके पवित्र करके हिन्दू धर्म मे शामिल किया गया ब्राह्मण द्वारा ☺☺☺

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    1. मे सिध्द कर सकता हू ।जो क्षत्रिय हे वो यहा के हे ।जो राजपूत हे वो बाहरी हे

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    2. क्षत्रिय राजपूत में अंतर क्या है

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    3. Chatriya to rajput ho Sakta per koi jaruri nahi ki har rajput chatriya hi ho

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    4. Abe bewakud vo aise h ki Rajput kshtriya ho sakta h per jaruri nahi har kshtriye rajput ho😑

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    5. Dharmendra sabot karkr dikha tumhari pidhita tak sabit nahi kar sakti

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  9. Ye rajput or brahman ek hi gaad k tati h ek dusre ki gungaan to karnge hi .samay ane par hum inki wo haal krnge ki hagne layak na rhnge ye.

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  10. Ye bajpei jaise lekhak usi tarah h jaise pritvi Raj ke samay ,chandbardai Jo kewaljhuth hi likha,usi tarah Akbar ke darbari the Jo uski aslilta ko chhupa kar hero bna diye,

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  11. Bhai logo ye bhati ji kirar thakur hen.
    Ye thakur bhaiyon se chhote hote hen.
    Yadav enko Yadav nahi mante.

    Es liye ye झटपटा रहे है।

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  12. Bajpayi ji mahabharat k bad ka dooba teen hajar sal ka ithas bhi logo ko bataya karo AP mahan gyani ho per jhoot bolna chhoda nahi

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  13. Kyo bhul gye ye janev khase aayi sarir pe parshu ram Ji ke darse

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  15. Rajput bahut saari jaatiyo se bani hai sir crook ke anusaar
    Sir James Todd ke anusaar yaduvanshi ahir jaat aur meena aur bhramano se bani hai
    Rajput ki agnivanshi theory shuddikaran aur nav Hindu dharm Mai roopantran hua tha agnivanshi theory rajputo ki nakli utpaati ke liye gadi gayi
    Baghel rajput gadariya hai
    Gond rajput gond adivasiyo b
    Bisen sainthwaar kurmi se
    Poorbiya bihaar ke kahar bhar Cheri sainthwaar aur santhalo ki aulaade hai
    Bhatti chudsama jadeja ye ahir ksatriya hai
    Parihaar parmar tanver chouhaan ye gujjer hai
    Solanki ye South Indian native chalukya see bani hai
    Kuswaha ya kashwah rajput koeri jaati ya Kashi jaati see inki Amer ki Gayatri Devi raani ne apne poorvajo ko bihaar ke koeri jaati se btaya tha
    Sisodiya sassian saka jaati hai
    False vanshavali tyaar ki
    Smith walia ke anusaar bahut saari bhraman jaatiya bhi rajputo Mai shamil ho gai thi
    Parmar Sengar gootam aadi

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    1. आप और योगेश रोही के व्याख्यान मे काफी दम है

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  16. मुगलो के हरम मे अपनी बहनों को रात गुजारने के लिए भेजने हमारी यदुवंश मे घुसपैठ न करे।

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  17. यादवों का व्रज क्षेत्र की परिसीमा करौली का इतिहास---
    धर्म्मपाल से लेकर अर्जुन पाल तक ----

    प्रस्तुति-करण:-
    यादव योगेश कुमार "रोहि"
    ________________________

    १-धर्म्मपाल
    २-सिंहपाल
    ३-जगपाल
    ४- नरपाल
    ५-संग्रामपाल
    ६-कुन्तपाल
    ७-भौमपाल
    ८-सोचपाल
    ९-पोचपाल
    १०-ब्रह्मपाल
    ११-जैतपाल ।
    करौली का इतिहास प्रारम्भ होता है विजयपाल से ---
    यह बारहवाँ पाल शासक था ---
    1030 ई०सन् विजयपाल
    १२- विजयपाल (1030)
    १३- त्रिभुवनपाल(1000)
    १४-धर्मपाल (1090)
    १५- कुँवरपाल (1120)
    १६-अजयपाल(1150)
    १७-हरिपाल ( 1180)
    १८-सुघड़पाल(1196)
    १९- अनंगपाल(1120 )
    २०- पृथ्वी पाल (1242)
    २१- राजपाल (1264)
    २२- त्रिलोकपाल(1284)
    २३-विप्पलपाल(1330)
    २४-गुगोलपाल(1352)
    २५-अर्जुनपाल(1374)
    २६- विक्रमपाल(1396)
    २७-अभयन्द्रपाल (1418)
    २८- पृथ्वी राज पाल (1440)
    २९चन्द्रसेनपाल(1462)
    ३०-भारतीचन्द्रपाल(1484)
    ३१-गोपालदास (1506)
    ३२- द्वारिका दास(1528)
    ३३-मुकुन्ददास(1550)
    ३४- युगपाल(1572)
    ३५-तुलसीपाल (1894)
    ३६- धर्म्मपाल(1616)
    ३७-रतनपाल(1638)
    ३८-आरतीपाल ( 1860)
    ३९- अजयपाल(1682)
    ४०-रक्षपाल (1704)
    ४१-सुधाधरपाल( 1726  )
    ४२-कँवरपाल(1748 )
    ४३-श्रीगोपाल( 1770  )
    ४४-माणिक्यपाल( 1792 )
    ४५-अमोलपाल(1814 )
    ४६-हरिपाल ( 1836)
    ४७-मधुपाल (1856 )
    ४८-अर्जुन पाल (1879)
    उन्नीसवीं सदी के पूर्वार्ध तक अड़तालीस यदुवंशी पाल उपाधि धारक शासकों की शासन सत्ता रही व्रज क्षेत्र कि परिसीमा करौली रियासत में ---👇
    करौली के ये शासक अपने नाम- के बाद पाल उपाधि लगाते थे ।
    कुछ ने दास उपाधि को भी लगाया।
    _________________________

    दास शब्द और गोप शब्द ऋग्वेद के कई सन्दर्भों में यदु और तुर्वसु के लिए आया है ।
    ऋग्वेद 10/62/10
    उत् दासा परिविषे स्मत्दृष्टी गोपर् ईणसा यदुस्तुर्वशुश्च ।।ऋ०10/62/10
    वस्तुत ये समग्र समीकरण मूलक प्रमाण अहीरों के पक्ष में हैं कि करौली के शासक स्वयं को पाल अथवा गोपाल या गोपोंं के रूप में ही प्रस्तुत करते हैं ।

    प्राचीन काल में यादवों की एक शाखा कुकुर कहलाती थी । ये लोग अन्धक राजा के पुत्र कुकुर के वंशज माने जाते थे । भारतीय पुराणों में यादवों के कुछ कबीलाई नाम अधिक प्रसिद्ध रहे विशेषत: भरतपुर के जाटों , गुज्जर तथा व्रज क्षेत्र के अहीरों में । जैसे दाशार्ह से विकसित रूप देशबाल -दशवार , सात्वत शब्द से विकसित रूप - सावत सोत तथा सूद आदि , कम्बल से कम्बल तथा कमरिया रूप ---जो राजस्थान के भीलबाड़ा क्षेत्र से निर्गत हुए । ये सभीे शब्द कालान्तरण में हिन्दी की व्रज बोली में प्रचलन हुए। इसी प्रकार कुक्कुर शब्द से कुर्रा , कुर्रू ककुरुआ आदि रूपों का विकास हुआ । कुकुरो भजमानश्च शुचिः कम्बलबर्हिषः । “अन्धकात् काश्यदुहिता चतुरोलभतात्मजान् कुकुरं भजमानं च शमं कम्बलबहिषम्” हरिवंश पुराण ३८ ये वस्तुत यादवों के कबीलागत विशेषण हैं । कुकुर एक प्रदेश था । जहाँ कुक्कुर जाति के यादव रहते थे ; यह प्रदेश राजपूताने के अन्तर्गत था ; जो कभी मत्स्य देश था  । और कालान्तरण में उसके वंशजों द्वारा इसका पुन: नामकरण हुआ कुकुरावलि। कुकुर अवलि =कुकुरावलि --कुरावली---करौली _________________________
    संस्कृत ग्रन्थों में कुकुर यादवों के विषय में पर्याप्त आख्यान परक विवरण प्राप्त होता है । कोश ग्रन्थों में इस शब्द की व्युत्पत्ति काल्पनिक रूप से इस प्रकार दर्शायी गयी है । जैसे कुम् पृथिवीं कुरति त्यजति स्वामित्वेन इति कुकुर इति कुकुर कथ्यते। अर्थात् दो स्वामित्व से द्वारा अपनी भूमि त्यागता है वह कुकुर है ।। अग्र प्रकरण में पुराणों से उद्धृत ये तथ्य अनुमोदक हैं ।👇 यदुवंशीयनृपभेदे तेषां ययातिशापात् राज्यं नास्तीति पुराणकथा  । अर्थात् यदु के वंशज जिनके पूर्वज यदु ने ययाति के शाप से राज्य प्राप्त नहीं किया । “ कुकुरनृपश्चान्धकुकुरः भजमानशुचिकम्बलबर्हिषास्तथान्धकस्य पुत्राः” इति विष्णु पुराण। वारगाथा काल में नल्ह सिंह भाट द्वारा विजय पाल रासो के रचना की गयी । नल्हसिंह भाट कृत इस रचना के केवल '42' छन्द उपलब्ध है। विजयपाल, जिनके विषय में यह रासो काव्य है, विजयगढ़, करौली के 'यादव' राजा थे। इनके आश्रित कवि के रुप में 'नल्ह सिंह' का नाम आता है। रचना की भाषा से यह ज्ञात होता है कि यह रचना 17 वीं शताब्दी से पूर्व की नहीं हो सकती है। और विजयपाल का समय 1030  के समकालिक है ।
    अस्तु काल के प्रभाव से मथुरा को त्याग कर जब विजयपाल के वंशज सम्वत् 1052 में बयाने के पास बनी पहाड़ी की उपत्यका में ये जा बसे | क्यों कि बयाना वज्रायन शब्द का तद्भव रूप है । और वज्र कृष्ण के प्रपौत्र (नाती) थे । पुराणों में वज्रनाभ का वर्णन इस प्रकार है :- श्रीकृष्णप्रपौत्त्रः- यथा   -“ अनिरुद्धात् सुभद्रायां वज्रो नाम नृपोऽभवत् । प्रतिबाहुर्वज्रसुतश्चारुस्तस्य सुतोऽभवत् ॥ “ इति गरुडपुराण १४४अध्याय।

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    1. Abe Teri bahan Ki bosadi sale madherjaat yadu ko ko daas gau Mata ka btaaya gya Hai na Ki Sudra ke rup me saale

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    2. आपके हिसाब से देखा जाये तो ब्रज क्षेत्र मेवात के मेव भी यदुवंशी हे
      सांभरपाल के पुत्र नाहर ने 13 वी शताब्दी मे इसलाम कबूला!
      बयाना का युद्ध कर करोली राजपरिवार के जदोवंशी वंसज पहाडो की तरफ चले गये और तिजारा को अपनी राजधानी बनाया
      बाद मे इसी कुल मे हसनखा मेवाती का जन्म हुआ

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    1. राजपुत के उत्तपत्ति के बारे में
      कुछ इतिहासकार विदेशियों के हिंदू समाज में विलय हेतु यज्ञ द्वारा शुद्धिकरण की पारम्परिक घटना के रूप मे देखते हैं।[कृपया उद्धरण जोड़ें]
      क्योकि पृथ्वीराज रासो में लिखा है कि आबु पर्वत पे यज्ञ के आग से कुछ लोग पैदा हुयें जिनको राजपुत बोला गया। इस घटना को यानि राजपुतों के इस उत्तपत्ति को इतिहासकार विदेशी जातियों का हिन्दुओं में विलय मानते हैं जिन्हें यज्ञ के अग्नि से शुध्द करके हिन्दु धर्म मे मिलाया गया।

      सोलहवीं सदी के, फ़ारसी भाषा में तारीख़-ए-फ़िरिश्ता नाम से भारत का इतिहास लिखने वाले इतिहासकार, मोहम्मद क़ासिम फ़िरिश्ता ने राजपूतों की उत्पत्ति के बारे में कहा है कि जब राजा, उनकी विवाहित पत्नियों से संतुष्ट नहीं होते थे, अक्सर उनकी महिला दासियो द्वारा बच्चे पैदा करते थे, जो सिंहासन के लिए वैध रूप से जायज़ उत्तराधिकारी तो नहीं होते थे, लेकिन राजपूत या राजाओं के पुत्र कहलाते थे।[7][8]


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  20. हमें ऐसा राजपुताना नही चाहिए। हम यदुवंशी(अहीर) ही ठीक हैं।

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    1. Ye sabhi rajputo ke nam per kale dhabhe h agrejo aur musalmano ki nasal h.yadav mer jayenge Lekin apni bahu betiya kisi dusmano Ko nahi denge

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    2. Tum to rajput ki najaj auald ho bhai ahir nokar hua karte the unke

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    3. तेरी बहेन का भोसड़ा मादरचोद 12 शताब्दी मे राजपूत नाम पैदा हुआ है बे और हा तुम साले तो बंजारे हो बे जादौन बंजारा है जोकि अहिरो की औलाद है और भाटी जो है यर भाट है साले यादवो के यहाँ भाट गाने आते थे और ये जडेजा जो है ये साले मुल्ले जाम उनर के वंशज है मादरचोद और इनको बनना है यादव गोप अहीर गोपल हाहाहा चमार banjaei

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    4. TERI BAHAN KA BHOSDA ,SALE AHIR,TUM SALO KUTTO KI OLAD HO

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    5. Purani kahavat hai ki aheer , dhan ke liye apni beti bhi sula deta hai

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    6. Tu sale khajua apni bhan betiyan mugalon ko soupte rhe vahi jante ho mahamadarcod.

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  21. अहि कह सर्प इर जो मारे, कह अहीर जब सर्प संघारे।
    प्रभु आज्ञा यदु सर्प संघारा,तब यदुवंश अहीर पुकारा।

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  22. विष्णु कहते हैं,"है मथुरा के अहीरों मेरा आठवां जन्म तुम लोगों में होगा" पद्मपुराण

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  23. अहीर और यादव तो एक ही हैं ,क्षत्रिय कोई जाती नहीं अपितु वर्ण है जिसमे अहीर सबसे प्राचीन क्षत्रिय जाती है ,राजपूत ,जाट और गुर्जर तो ७ वी सदी मैं इस देश मैं आये अहीर प्राचीन वैदिक क्षत्रिय जाती है ,कुछ बदनीयती वाले पोंगा पंडितो ने उन्हें क्षत्रिय न मैंने से इंकार किया है कियोंकि वो ब्राहम्णो के अनैतिक कार्यो के साथ नहीं थे









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    उत्तर
    1. Bhai ahir jaat aur gujjer hi sabse purane ksatriya hai per ahir sabse purane pahle ka bharat bahut bada tha isliye ahir jaat aur gujjer to poore euarasia mai milte hai rajput hum mai se aur kuch bhar aadi jaati se bane hai

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    2. तुम कह रहे हो कि क्षत्रिय कोई जाति नहीं? तुम द्वापर युग की बात कर रहे अभी? क्षत्रिय का नाम त्रेतायुग से ही चल रहा श्रीराम के समय से। श्रीराम क्षत्रिय कुल में अवतरित हुए थे और बार-बार खुद को क्षत्रिय बोलते हैं रामायण धारावाहिक में जो चार प्रामाणिक ग्रन्थों के तथ्यों के आधार पर बना है।तुम लोग भी क्षत्रिय हो लेकिन राजा यदु के नाम पर यदुवंशी-यदुवंशी चिल्लाते हो ।ये ऐसे समझ लो जैसे दो भाइयों में झगड़ा हुआ और एक ने अपना अलग कर लिया सबकुछ नाम के साथ।

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    3. यदुवंशी कहो या अहीर, ये तो वैदिक क्षत्रिय है, लेकिन राजपूत शूद्र है, क्यू की राजपूतों में शूद्रों का रक्त है। Rajput pure kshatriya nahi hai।
      राजपूतों की उत्पत्ति क्षत्रियों के कारण से हुई। नहीं तो राजपूत आज भी कहीं tatti साफ कर रहे होते।

      वैश्या + शूद्र = करण
      क्षत्रिय + करण कन्या = राजपूत।

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    4. Madarchodo tatti tum saaf karte aaye the or karte rahoge salo baap to akhir hame hi bnaoge chahe kitna bhi jor lgalo bap hme hi kahoge

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  24. उत्तर
    1. Teri utpatti kutto se hui yadav koi jaati nahi ek race hai mahapandit rahul sanskrityan ne ise sabit kiya visva ki sabhi ladku arya jaati ka utpaati yaduvanahi se hui yadav jaat gujker is great race of world

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    2. Jaat Or yadav Or ahir ye ek hi kul se h
      Ye dono mausere bhai h
      Jo kahawate jaat k bare me boli jati h thik whi ahiro k bare bhi boli jati h

      हटाएं
  25. बेटा अपनी बहन बेटियों की बताओ जो सिर्फ मुगल सेनिको के बिस्तर तक ही सीमित थी और तुम्हारे बाप दादा डर के मारे उनके घघरे मैं घुसे रहते थे अगर आज जिंदा हो या अपने धर्म मे हो तो राजपूतों की वजह से हो अपने बाप दादाओं से पूछ लो जाकर

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    उत्तर
    1. Inko sayad y nahi malum ki aap jo yaha per hindi ya English me likh rahy hai yadi rajput na hoty to aap isy Urdu ya farsi me likh rahy hoty

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    2. Are mdrchd sale ye bate khud ke liye kah rha hai
      Sale muglo ki paidais
      Sale pahle muglo ke ghaghare me fir angrejo ke ghaghare me guse the
      Vo apni bahan beti dekhar

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    3. Are maderchooood tere baap dada the jo gaand marate the akela rajput kab tak ldta bechara baki tum tub apni apni bahn chudaaavaa rahe the

      हटाएं
  26. अरे मूर्ख वाजपेयी,तुम्हे ये पता नही कि महाराजा यदु से लेकर भगवान श्रीकृष्ण और अब तक अहिरो की वीरता से पूरी दुनिया परिचित है कई विद्वानों के अनुसार अहीर ही सबसे पवित्र व शुद्ध आर्य क्षत्रिय है उदाहरण के लिए आज भी बनारस में बाबा विश्वनाथ में सबसे पहले अहीर ही जलाभिषेक करते है।
    अहीरों के सैकड़ो कुल और जातियां अलग अलग नामों से जानी जाती है,अहीर यादव,गोप,गोल्ला,ढिंढोर राव,आदि नामक जाति से पूरे भारत मे पाए जाते हैं।

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  27. YADUVANSHI HISTORY KI JANKARI WWW.SHRIHARINAM.COM PAR JA KAR PDM ME FREE ME DOWNLOAD KAR SAKTE HE.

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  28. पोस्ट डालने वाले एक ओर तुम लोग नंद बाबा को अहीर बोलते हो एक ओर बोलते हो अहीर अलग है यदुवंश से तो सुन गीताप्रेस गोरखपूर प्रकाशन जो हिंदुओ की सबसे प्रमाणिक प्रकाशन है श्रीमदभागवत पुराण 2रा भाग लेना और दसवा स्कंध लोक के साथ पढना नंद बाबा और वसुदेव भाई थे अर्थात अहीर यदुवंशि है और हाँ अहीर तुम्हारे जैसे लोग से रिशता नही जोडते तुम को अपने योग्य नही समझते कारण यदुवंशी अपना रक्त गंदा नही करना चाहते अहीर ब्राह्मणो के बाद सबसे अधिक शुद्ध रक्त वाले आर्य हे ऊँट का मुत पीकर कुछ का कुछ मत बक

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  29. तू अहीर का मतलब है ....क्या गाली दे उस लायक भी नहीं है तू।

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  30. इन मादर चोद, पंडितों ने, अपने अनुसार कुछ भी लिख लिया है,
    इन पंडितों की हम यादवों से गांड फटती है, जलते हैं हमसे इसलिए हमारे बारे में उल्टा सीधा लिखते हैं, और हम क्षत्रिय यादवों को शुद्र बताते हैं

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  31. Yogesh भाई मै आश्चर्य मे हूँ कि इतना सटीक इतना पुख्ता प्रमाण इतना ग्यान आपने धारण किया है वाह

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  32. राजपूत भाईयों से कहना चाहूँगा"क्या देवायत बोदर एक अहीर सरदार थे..क्या देवायत ने अपने चूडासम राजा के एक वर्ष के बच्चे नवघन को बडा होने तक पाला फिर सोलंकी राजा को हराकर नवघन को राजा बनाया... देवायत और उसके वंशजो को क्या मिला...अहीर सेना को क्या मिला..क्या ये युद्घ अहीरो ने सेलरी के लिए लडा था...लेकिन अब चुडासमा और सोलंकी दोनो
    ब्राह्मण धर्म को जीवित रखने हेतु बनाए राजपूत संघ मे हैं और मिलकर अहीरो को कोसते है ...।लोकतंत्र बेस्ट है

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  33. यादवों से जलो मत सालों
    बराबरी कर के दिखाओ

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  34. Sanskrit sloko me kahi bhi ahir nhi aaya sirf yaduvanshi aur yadav h

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  35. History pta nhi chle h humari history batane abe tujhe toh yeh bhi nhi pta ki yaduvansh ki utpatti kaise hui h... Abe maharaja yadu jo ki chandravanshi the.. ahir unhi k vanshaj h.. unke vanshaj jo ki yadav k naam se jane jate h yaduvanshi kehlaye jate h.. or haan ahir ek prachin jati h kahi bhi pad le wiki search krle.. internet pr fake news jyada milti h wahi pad kr aa gya wiki pad sirf

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  36. Ahirandiyo ki olaade ab jada bolne lg gyee h
    Apna ithaas bhool gye jo sale thakuro ki tattee daala krte the apnee sir pr rkh kr

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  37. Mujhe laga mujhe iska kuch jawab dena chahiye but mere yadav bhaiyo ne bhut ache se smjhaya hain in histroy choro ko.
    Jai yadav jai madhav

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  38. Chudra ahir gwar asli yadav nhi he ...ye log nand vansi gwal vansi agir he....vasudev ko khin bhi ahir nhi bataya gya he...aur ahir gawala ki value ye thi ki 11 sal 56 din gokul me rehne ke karan ahir gwala bol kar kans duryodhan sisupal chidhate the krishn ko...yani ahir fwala ko kshtruta se nicha or chudra mana jta tha karm ke anusar
    ..hindu dharm ke char warg the
    Brahman kshatruya chudra besya
    Ab lahiro tum log socho dwapr me chudra kun tha aur besya kon tha

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  39. योगेश रोही जी ने जिस विद्वता के साथ अपनी बात रखी उसका जवाब देते नही बना तो गाली गलौज पर उतर आए ।गुर्जरजी कभी कभी पढ भी लिया करो अगर इतिहास जानते तोकुत्ता कुत्ती की भाषा नही प्रयोग करते।

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  40. Rajput मलिच्च hote hai, इनके देह में मुगलों और शूद्रों का रक्त होता है।

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    उत्तर
    1. Nahi bhai aisa nahi bolna chaiye, rajput ne apna rakt bahaya mughlo ke liye, abhi hindu ekta jaruri, musalmano mai humse kai jaatiya hoti he par phir bhi kaafiro ke khilaf woh ek ho jaate he sab ke sab. Hume unse sikhna chahiye. Aaj hi Rajasthan ke udaipur mai hazaro log ek juth hokar dasna mandir ke pujari ka sar' tan se juda' ye naare lage rahe he. Isliye hume ek hona jaruri hai.
      Jai hindu ekta, jai yaduvansh.

      हटाएं
  41. रांड पूत की उत्पत्ति, यादव राजाओं के यहां जों दासिया थी उससे हुई, वे दासिया आदिवासियों से संबंध बनाती थी, इसलिए उसके पुत्रो को रांड पुत्र कहते हे, कुछ मादरचोद मुगल ओर अंग्रेज़ो ने, धरती पर अहीर यादवों का इतिहास मिटाकर रांड पुत्रों को राजा दिखा दिया

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  42. Aheer yaduwanshi hi yadu aur krishan ke asli wansaj hai ye sale randiput aheer yaduwanshi ki nazayaz aulad hai ye jadeja jaduan bhati chudasma addi

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  43. Suyam Bhagwan vishnu ne dada yadu ko abheer keh ke pukara tha aur Bhagwan vishnu ki sahayta ki thi tab Bhagwan vishnu ne kaha tha main suyam yaduwansh main janm lunga

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  44. १)नंदवंश प्रदिप 34- ‘‘नंद क्षत्रियः गोपालवाद गोप्’’
    २) शक्तिसंगमतंत्र - ‘‘आहूकवंशात समुद्भूताः आभीर इतिप्रकिर्तितः
    ३)जाति विवेकाध्याय:- आहूक जन्मवन्तश्च आभीराः क्षत्रिया भवन
    ४)नंदवंशप्रदिप:- आहुकवंश सम्भूता आभीरा:
    ५) स्कंदपूराण गोदाविंध्याद्रि मध्ये तु देश आभिर संज्ञितः तास्मिन्देशे समुत्पन्ना आभीरा नाम द्विजः
    ६) विष्णुशर्मा-
    पंचतंत्र आभीर देशे किल चंद्रकांतम त्रिभिरवराटैर विपणंति गोपा
    ७)वात्स्यायन -कामसुत्र आभीरं ही कोट्राजं परभवनगतं भ्रातृप्रयुक्तो रजको जघान 5-5-1753

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  45. गोमा विन्ध्याद्रि मध्ये तु यो देशो ऽभीर संज्ञितः
    तस्मिंदेशे समुत्पन्नो योऽभिरो नामसंज्ञितः
    स्कंद्पुराण
    गोदाविन्ध्याद्रि मध्ये तु देश आभीर संज्ञितः
    तस्मिंदेशे समुत्पन्ना आभीर नाम द्विजाः
    स्कंद्पुराण

    अंगवंग कलिंगांदि तत्तदेशेषु ये द्विजाः
    तथा तापी पयस्विन्यो संगमो यत्र वर्तते
    तमारभ्य त्वहिर्देशो मयुर पर्वतावधि
    ब्रम्ह्पुराण
    अहिर्देशोभवा विप्रा प्रसिधः ऽभिरसंज्ञया
    ब्रम्ह्पुराण

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  46. खानदेश के आभीर यादवोके संदर्भ मे विभिन्न महाराष्ट्रीयन प्रमुख इतिहास कार एवम विद्वानोके विचार
    श. गो. जोशी (1940)
    आभीर यादववंशी है। यादवों ने आठवीं शताब्दी में दक्षिण में शासन किया और बारहवीं और तेरहवीं शताब्दी में उन्होंने देवगिरि (दौलताबाद) पर शासन किया। यह इतिहास पुराणों से सिद्ध होता है।
    जोशी श. गो. (1940) माध्यंदिन शाखा प्रकरण जळगाव:श्रीकृष्ण प्रिंटींग प्रेस

    पा मा चांदोरकर
    श्रीकृष्ण ने अपना बचपन जिनमें बिताया वह गोकुल वृंदावन के नंदादी गोप आभीर थे यह प्रसिद्ध है यादवों को गोप यह सामान्य संज्ञा थी ब्रज के नंदादि गोप मूल यादव थे गोप आभीर यह स्वतंत्र जाति नहीं बल्कि एक व्यवसाय था जो यादव ने अपने रूचि के अनुसार चुना था
    चांदोरकर पा. मा. खान्देश व खान्देशी भाषा पुणेः भारत इतिहास संशोधन मंडळ

    भा.र.कुलकर्णी (1942)
    " अहिरोके हथियार, तलवार, ढाल और कुल्हाड़ी आर्यों के समान थे। वे पशुपालन करते थे, वे पितृपूजक थे, वे अग्नि-पूजक थे, और अहीर किसी भी युद्ध में दिखाई देते थे। आभीर मूल रूप से युद्धप्रिय प्रवृत्ति के लोग थे जिनकी गणना श्रेष्ठ योद्धाओमे की जाती थी।
    कुलकर्णी भा. र. अहिराणी भाषा एवम संस्कृती शिरपूर: दि ब वाघमारे
    वि.का.राजवाडे
    अहीर जातीसंस्थ लोग इस दृष्टिसे इतिहासमे दृष्टिगोचर होते है। और आज भी वैसेही परंपरासे ही जातीसंस्थ है। उनके देव और धर्म आर्योंके जैसे पहले थे और आज भी है।
    डॉ. रा. श्री. मोरवंचीकर
    कृष्ण और अहिरोका रक्तका नाता है, वह उनका दैवत एवं लोकप्रिय नेता है। आभीर कृषिप्रधान संस्कृतिके जनक थे, जलक्रीड़ा, नृत्य अहिरोके छंद थे। उन्हीके नामसे खान्देश में चित्रकला, शिल्पकला, वास्तुकला इनका विकास हुआ। पीतलखोरा, घटत्कोच, बाघ इत्यादि लेणिया उनके उच्चाभिरूचिके दर्शन कराते है ऐसे श्रेष्ठ आभीर संस्कृतिको मे नमन करता हु।
    जगताप पी.डी. खान्देश का सांस्कृतिक इतिहास, का.स.वाणी २००४ पृष्ठ ६८
    डॉक्टर दा. गो. बोरसे
    देवगिरीं के यादवोंको अहीरराजे, गवलीराजे कहा जाता था। जडेजा एवं चुडासामा खुदको चन्द्रवंशीय अहीर मानते थे। अहिरोका मूलस्थान भारत है और वे इस मातृभूमि के सुपुत्र है वे सूर्यपुत्र थे, और उन्हें यदुवंशीय आर्य कहा जाता था। आर्यत्व के आवश्यक लक्षण उनको पूर्णरूपसे लागु होता था।
    कृष्णा पाटील
    आभीर नामक शक्तिशाली लोकसमूह या राजवंश बहुत प्राचीन काल से खानदेश मे रहता था ----- वे क्षत्रिय यादव थे
    रा. ब. वैद्य
    श्रीकृष्णादी यादव द्वारका मे निवास करते थे वे गोप ही थे

    मुंबई विद्यापीठ मराठी विभाग
    यादवोंका का घराणा आभीर क्षत्रिय कुलमे से था
    https://books.google.co.in/books?id=

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  47. कुछ महान ज्ञानी मादरचोद एक नकली काव्य ग्रंथ रासो की 17 शताब्दी फर्जी अग्निवंश की कहानी का आधार बनाकर शुद्धिकरण तो पता नहीं क्या ज्ञान दे रहे ,
    जैसे इनके बाप कर्नल टाड ने राजपूतों में प्रचलित परम्परा जैसे रथों द्वारा युद्ध, यज्ञ करना,अश्व पूजा,अग्नि पूजा ,उत्कृष्ट वेश भूषा ,सती प्रथा आदि को आधार बनाकर राजपूतों को विदेशी बताया था😂😂 ये थे इनके अब्बा कर्नल टॉड के राजपूतों को विदेशी साबित करने का आधार😂😂 जबकि धार्मिक ग्रन्थ और इतिहास साफ बया करते हैं कि ये सारी प्रक्रियाएं आर्य क्षत्रियों में हजारों वर्ष से चली आ रही है तब इन विदेशियों का नामोनिशान भी नहीं था , ठीक इसी प्रकार ये अग्निवंश की फर्जी कहानी भी है ,सारे इतिहासकार रासो और उसकी कहानी को फर्जी करार कर चुके हैं ,लेकिन कुछ मादरचोदो को समझ नहीं आ रहा है

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  48. Kshattra to bheelo ne luta tha gopiyo ko luta bheelo ne kshattra ko luta bheelo ne mausal par me likha hua hai phir ye tum logo ke pas kaise aaya? Mtlb saf hai tum hi log the gopiyo ko lutne wale bheel banajre or aaj vahi kshattra tum logo ke pas hai bheel banajre Bhati banajre jadaun banajre tum logo ke upar case Kiya jayga kshattra bapas liya jayga sabse bda sabut mousal parv hai jisme saf likha hua hai bheelo ne gopiyo and kshattra ko luta tha bheelputs Bhati banajare jadaun Muslim jadeja

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  49. क्षत्रिय यादव ओर शूद्र कन्या की ओलाद राजपूत कहलाती है

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  50. Yadav or ahir ek hi vans ke the jise sabhi viddvano ne mana hai isliye jalanvas is visay per tippdi na kare pahle apna gyan thik kare

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  51. Main bhi ek yaduvanshi jadoun hu aur ahir bhi yaduvanshi hi hote hai please read harivansh puran and padam puran aur ahir ek title tha jo ki raja Ahuka aur kirshna ji ko di gayi thi na ki koi jati bad mein iss ko jati bana diya tha aur abhira(aaj ke ahir) ka bhi bahut badda ithas hai gopal dynasty of Nepal, rewari Rao rula ram , raja lorik ,aalh udhal and many more

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  52. Akhil bharatiya kshatriya mahasabha ke adhyaksh thakur vijay singh ne apni book mein krishan ko koli kuli kshatriya bataya hai ye baat sabko pta hai ki krishan kshatriya the aur ahir(gopika) thi to ahir yadav kaise hue kioki yadav korar jati aur gadriya kuch thakor bhi use kar rhe h bhi use kar rhe hai ye kushan Dynasty ke raja ko vasudeva bola jata hai jo ki gurjar hai

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