गुरुवार, 20 अप्रैल 2017

मांगलिया(सिसोदिया)----इतिहास के आईने में-आईदान सिंह जी भाटी

मांगलिया (सिसोदिया)---इतिहास के आईने में –आईदानसिंह भाटी
राजस्थान की आंचलिक संस्कृतियां बड़ी समृद्ध और रोचक रही है | इस रोचकता में गाँवों के नाम और उनका इतिहास भी जुड़ा हुआ है | राजस्थान में जोधपुर के बसने से पूर्व का वृतांत है यह | मारवाड़ में बप्पा रावल के पुत्र आणंददे के वंशज मांगलिया  कहलाए | संभवत: आणंददे के वंशजों में कोई मंगल हुआ, जिससे उस शाखा का नाम मांगलिया पड़ा | बप्पा रावल के समय संभवत: आणंददे मारवाड़ आ गया होगा | इस मांगलियावाटी की राजधानी आज का सुप्रसिद्ध नगर-कस्बा खींवसर था ,जिसे खींवसी मांगलिया ने बसाया था | इसी खींवसी मांगलिया की राजकुमारी लखांदे जैसलमेर के रावल दूदा अथवा दुरजनसाल को ब्याही गई थी | यह रानी जैसलमेर के द्वितीय साके के समय अपने पीहर थी जो सांदू हूंफा अथवा हूँफकरण के साथ अपने पति का शीश ढूँढने जैसलमेर गई थी और तब सांदू हूंफा ने अपनी ओजस्वी वाणी से लोकप्रसिद्धि के अनुसार कटे मुंड को बोलने के लिए विवश किया था | इस संबंध में जोधपुर महाराजा मानसिंह जी का सुप्रसिद्ध दोहा है –
सांदू हूंफे सेवियो, साहब दुरजनसल्ल |
बिडदा माथो बोलियो, गीतां, दूहां गल्ल ||
रावल मल्लीनाथजी के छोटे भाई राव वीरमदेव की बड़ी रानी मांगलियाणी ही थी |
यह मांगलिया शाखा जोधपुर राज्य की स्थापना से लेकर  खींवसर  उनके हाथ से निकलने के बाद तक महत्वपूर्ण रही | मांगलिया मेहाजी तो मारवाड़ के पांच पीरों में सुप्रसिद्द है –
‘पाबू, हडबू , रामदे , मांगलिया मेहा |’
इन मेहाजी के सम्बन्ध में इतिहासकारों ने जबरदस्त विभ्रम फैलाया | उन्हें मेहराज सांखला के साथ जोड़ दिया  | मेरी समझ से इस विभ्रम को मैंने कई बार इतिहासविदों के सामने मौखिक रूप से तोड़ने की कोशिश की, लेकिन ढाक के तीन  पात की तरह मामला आगे नहीं बढ़ा | अंतत:मेरे आग्रह को स्वीकार कर श्री गिरधरदानजी रतनू दासोडी ने एक विस्तृत-लेख परम्परा – पत्रिका में लिख कर इस भ्रम को तोडा | इस लेख में मेहाजी को इतिहास के साथ जोड़कर उन विभ्रमों पर भी बात की, जो लोक में मौखिक और साहित्यिक रूप से प्रचलित रहे हैं |
 इतिहास विश्रुत भगवती करनीजी का पीहर सुवाप मांगलियावाटी का ही हिस्सा रहा है जो मांगलियों द्वारा ही भगवती करनीजी के पिताजी को जागीर के रूप में दिया गया था |
इसी शाखा के वीर संवत १६३२ में जब बादशाह अकबर ने कुम्भलनेर लिया तब मांगलिया जैतसी और उसका काका जैमल वहां काम आए थे|
 --(बाँकीदास री ख्यात –पेज-९३)

मांगलिया भादा बावड़ी के निवासी ने राव मालदेव को शिकारी कुत्ते भेंट किये थे | भादा के बेटे  देवाको राव मालदेव ने खूब मान दिया और सिवाणे को जेतमालोतों से लेकर मांगलिया देवा को दिया | देवा ने सिवाणेमें ही राम किया |
देवा का बेटा वीरमदे बड़ा सपूत हुआ | राव मालदेवजी ने मेड़ता  वीरमदे देवावत मांगलिया को भेंट तब किया जब उनकी मेड़तियों से अनबन चल रही थी | |(बाँकीदास री ख्यात-पेज ६०)  
इन्हीं का एक भाई  राव मालदेव के समय सिवाना का किलेदार था- किल्ला अथवा कल्याणसी मांगलिया | इसने बालोतरा के पास वाला कस्बा कल्याणपुर अपने नाम पर बसाया था | --(राठोड़ों री ख्यात) | इस तथ्य को आज बहुत कम लोग जानते हैं, क्योकि आज वहां मांगलियों का कोई बड़ा वजूद ही नहीं हैं |
खींवसर आसोप भी जब साळ-कटारी में करमसोतों को मिले तब मांगलियों का केंद्र बापीणी बना | मांगलिया भोज हमीरोत जिसकी बेटी दूल्हदे की शादी करमसी जोधावत के साथ हुई थी | इससे पंचायण , धनराज, नारायणऔर पीथूराव चार बेटे हुए | ((बाँकीदास री ख्यात-६७)
खीवसर मांगलियों के हाथ से निकलने के बाद खींवसर के बसाने की कल्पित कहानियाँ गढ़ी गई , जैसा कि  मांगलियावास (जोकि जयपुर रोड पर है, जहां प्रसिद्द कल्प-वृक्ष है | ) कस्बे के लिए राज-स्तरीय अखबारों में मैंने पढ़ा है की यह नाम ‘मांग कर लिया गया’ के अर्थ में पडा है ,जबकि यह मांगलियोंके किसी नायक के द्वारा बसाया क़स्बा है|
और भी बातें सिसोदियों  की इस शाखा से जुड़ी है,इतिहास के अध्ययन के बाद  फिर कभी |

बुधवार, 19 अप्रैल 2017

घात्यो नथमल बोरड़की रै घाव (भादरिया माता आण में बोरडी पेड़ काटने के बदले सोने का पेड़ चढ़ाना पड़ा तत्कालीन दीवान नथमल को )

‘घात्यौ नथमल बोरड़की रै घाव’

लगभग डेढ़ सदी पुरानी कहानी है यह | राजस्थान के गांवों में पर्यावरण संरक्षण का अपना लौकिक तरीका था| देवी-देवताओं के नाम से ओरण (बन-भूमि) छोड़े जाते थे| पाबूजी, रामदेवजी, तेजाजी, झरड़ाजी, गोगाजी, आईनाथजी और अन्य स्थानीय देवी-देवता व जूंझार-भोमियों (गायों व भूमि की रक्षा लिए हुए शहीद)के नाम पर ये ओरण संरक्षित होते थे | इसलिए लोग उन जगहों से तिनका भी नहीं तोड़ते थे, लकड़ी काटने का तो सवाल ही नहीं उठता था | इसी तरह गायों के चरने के लिए गोचर भूमि और उनके बैठने के लिए खैड़ा (गाँव के चारों ओर की जमीन) और तांडा (कुओं व तालाबों के पास की जमीन) होता था|  तालाबों के आगोरों (पानी आवक का क्षेत्र) में कोई भी शौचादि नहीं जा सकता था | बच्चों के खेलने और बुजुर्ग लोगों के बंतळ- हथाई के लिए खुला स्थान बाखळ होता था | इन सभी स्थानों पर कोई न तो बस सकता था और न ही कोई सार्वजनिक स्थान खड़ा किया जा सकता था | ब्रिटिश संविधान की तरह गाँवों का अपना अलिखित संविधान होता था | इस संविधान का उल्लंघन  करनेवाले को दंडित किया जाता था |
   जैसलमेर रियासत में एक गाँव था – ‘भादरिया’ | इस गाँव में भाटी राजपूतों की कुलदेवी का देवालय था | लोक में ‘सप्तमातृका’ के रूप में पूज्य यह देवी आईनाथजी के नाम से जानी जाती है | ‘आई’ का अर्थ माँ के संदर्भ में गुजरात, महाराष्ट्र से लेकर धुर पूर्व में आसाम तक में प्रयोग में आता है | थार में यह देवी के अर्थ में रूढ़ है | नाथ सम्प्रदाय का प्रभाव होने से आईनाथ शब्द आदरसूचक रूप में लोकमान्य है | इस देवी के नाम से ‘भादरिया’ गाँव के आसपास विशाल ओरण है | रियासत के राजा की भी यही कुलदेवी थी |
  इसी जैसलमेर रियासत का दीवान था मोहता नथमल | जैसलमेर जाने वाले पर्यटकों ने इस दीवान की भव्य हवेली अवश्य देखी होगी – ‘दीवान नथमल की हवेली’ | इसी दीवान की कहानी है यह | दीवान ने अपने पुत्र के पालने के लिए पेड़ काटने का आदेश दिया | दीवान के कारिंदे भादरिया के ओरण से पेड़ काटकर ले आए | उस ओरण से पेड़ काटकर ले गए जिस ओरण से राजा तक पेड़ नहीं काट सकता था | प्रजा की पुकार राजा तक पहुंची | राजा ने दीवान को इस कृत्य के लिए फटकारा और देवी के देवालय में सोने का पेड़ चढ़ाने का आदेश दिया | नथमल ने देवालय पहुँच कर माफ़ी मांगी और देवी के देवालय में सोने का पेड़ चढ़ाया |
    इस घटना को लोक-कवि ने एक अपने अंदाज में वर्णित किया | नथमल के नाम से देवी आईनाथजी की एक ‘चिरजा’ (प्रार्थना) रची, जो लोकगीत का रूप ले चुकी है | इस ‘चिरजा’ में वर्णित है कि दीवान नथमल के घर में पुत्र जन्मा | हरख-बधावे हुए | खुशियाँ मनाई गई | घर में एक पालने की जरूरत महसूस की गई |
नथमल ने खाती के बेटे को लुहार के घर जाकर एक बीजलसार(बिजली की तरह धारदार) कुल्हाड़ी लेकर आने को कहा | कुल्हाड़ी लेकर नथमल भादरिये के ओरण में पहुंचा और बोरड़ी (बेर का पेड़) को काटने लगा | लोक रचित इस गीत में खुद नथमल पेड़ काट रहा है, दीवान का कारिन्दा नहीं –
‘घात्यौ नथमल बोरड़की रै घाव,
बोरड़की करळाई नैनैबाळ ज्यौं |
बोरड़की करळाई कायर मोर ज्यौं |
( नथमल ने जब बोरड़ी पर कुल्हाड़ी से वार किया तो बोरड़ी का पेड़ नन्हे बालक की तरह विलाप करने लगा | वह पेड़ करुण स्वर में मोर की तरह कुरळाया | )
पेड़ नथमल को शाप देते हुए कहता है –
‘मरजौ नथमल थारोड़ी घरनार
पाळणियै में मरज्यौ मोभी डीकरौ
झोकड़ल्यौं में मरज्यौ भूरियौ ऊँठ
पैंखड़लयां में मरज्यौ भूरोड़ी भैंसड़ी |
( हे नथमल ! तेरी घरवाली मर जाए | पालने में अठखेलियाँ करता तेरा ज्येष्ठ बच्चा मर जाए | अपने स्थान पर बैठा तेरा ऊँट मर जाए | पांवों में सांकल डाली तेरी भैंस मर जाए | ) और फिर नथमल के घर में यही सब घटित हुआ | दीवान मुंह में घास डालकर माफीनामा लेकर भादरिये के देवालय पहुंचा | और फिर उसने वह सब जुर्म कबूल किया | उसने सोने का पेड़ देवी को चढ़ाया तब उसके घर में स्थितियाँ सामान्य हुईं |
‘जीवौ रे नथमल थारोड़ी घरनार
पाळणियै में हींडै मोभी डीकरौ
झोकड़ल्यौं में बैठौ भूरियौ ऊँठ
पैंखड़लयां में रिड़कै भूरोड़ी भैंसड़ी |
( हे नथमल ! तेरी घरवाली सलामत रहे | पालने में तेरा बड़ा बच्चा किलोळ करता रहे | तेरा ऊँट अपनी जगह सलामत रहे | तेरी भैंस अपनी जगह बंधी मिले | )
इस तरह नथमल के घर की स्थितियाँ सामान्य हुईं | इस चिरजा की खूबसूरती यह है कि लोक कवि ने नथमल को एक सामान्य गृहस्थी की तरह बताया है जिसके घर में स्त्री, बच्चा, ऊँट और भैंस होती है | यहाँ गाय की जगह लोक-कवि दीवान के कारण भैंस लाया है, नहीं तो भैंस जैसलमेर में विरल पशु है | यह कथा पर्यावरण संरक्षण की लौकिक स्थितियों की जीती जागती तस्वीर है जब रियासत का दीवान जैसा अधिकार संपन्न व्यक्ति भी दण्डित किया गया | लोकतंत्र में इन  कथाओं का पर्यावरण संरक्षण में महत्व  स्वयं सिद्ध है |
- आईदान सिंह जी भाटी

सोढा ( परमारों ) की खापे और महत्वपूर्ण जानकारी

सोढा परमारों की खापें
👉मूल पुरुष : परमार 
👉वंश : अग्निवंश (सूर्यवंश)
👉गौत्र : वशिष्ट
👉कुलक्षेत्र : आबू पर्वत 
👉 तिथि : पांचम 
👉महीनों : वेशाख 
👉वार : गुरु 
👉पागडी : पचरंगी 

👉झडो : त्रीबधी 
👉जाज़म : सूवा पंखी 
👉नदी : सफरा 
👉धोडो : कवलीयौ 
👉साखा: माधवी 
👉ढाल : हरीपंख 
👉तलवार : रणतर 
👉वुक्ष: आबो 
👉गाय : कवली गाय 
👉गणपति : ऐकदत 
👉भेरव : गोरा भेरव 
👉गुरु : गोरखनाथ 
👉निशान : केसरीसिंह 
👉शस्त्र : भालो 
👉वेद : यजुर्वेद 
👉भाम्र्न :राजगौर 
👉बेसणु : उज्जेन 
👉प्रवर : पांच 
👉महादानेश्वरी : राजा भोज 
👉भूदाने श्वर : राजा राम 
👉सूवण दानेश्वरी : सोढ़ा जी परमार 
👉कुंड : अनलकुंड 
👉वीरवत : राजाविक्रम 
👉परदुख भंजन : राजा वीर विक्रमादित्य 
👉आध : पुस्तराज 
👉प्राणदाता : इंद्र 
👉नगरी : चंद्रावती 
👉क्षमादान : राजा मूँज
👉कुलदेवी  : हरसीधी माँ 
👉इष्टदेवी : सचियाय माँ 
👉पीर : पिथौराजी 
🌞कुल परमार और सोढ़ा राजपूत 
का थोड़ा परिचय 👣वंशावली
👉राजा परमार 
👉पोहोकर 
👉पुरुराव 
👉कनक्कुवर 
👉सजा करण 
👉कुण 
👉भीमराज़ 
👉कलग 
👉राजा इंद्र 
👉राजा चदव 
👉राजा जगत सेन 
👉सूर्य हंस 
👉राजा चत्रग 
👉गद्रव सेन 
👉राजा वीर 
👉राजा विक्रमादित्य 
👉चदेव 
👉भीम देव 
👉बलदे राजा 
👉पत सेन 
👉भूपत राजा 
👉जसधमल 
👉राजा विमल 
👉साल भान 
👉संगत कुंवर 
👉राजा वीरों चद 
👉महिपाल 
👉पुर्थ्वि दंड 
👉गऊ पड़ 
👉गऊदेव 
👉कारथेन 
👉सहेस राज़ 
👉सत्य कुंवर 
👉साम देव 
👉वीरपाल 
👉वजेराज़ 
👉राजा सोम 
👉सिंधल सेन 
👉राजा भोज 
👉बधराज़ 
👉उदयादित्य 
👉जगदेव राय 
👉दाभ्र्म 
👉धधमार (सिधुराज )
👉धरणीवराह 
👉धोम 
👉उपट राव 
👉अलप राव 
👉बाहड़राय 
👉छाहड राव (छोड़जी )
👉सोढ़ा जी
सोढ़ा जी छे भाई थे और ऐक बहन 
सोढ़ा जी ! ! साखला जी ! ! वाधो जी ! ! जेतसी जी ! ! जेसगदेव जी ! ! परब जी ! ! केसर कुंवर (संचियाय देवी ) हुवे ? संचियाय देवी सोढ़ा जी के बहन थे ? और वो देवी शक्ति थे ? आज भी सोढ़ा कुल मे उनकी पूजा होती हे ? 
ऐसे परमार कुल मे सोढ़ा जी के बाद उनके वंशज़ सोढ़ा जी के बाद सोढ़ा सरनेम चली ? 
सोढ़ा जी के कुल मे भी पीछे उनके वंशजों के नाम से सोढ़ा कुल मे भी बहुत  सारे अलग अलग सोढ़ा सरनेम हूवी ? 
थोड़ा उनका परिचय
👉सोढ़ा जी (दो पुत्र हुवे )
👉चामकदेव जी (और ) सिंधल जी 
(सिंधल जी के पीछे उनका भी परिवार सिंधल सोढ़ा से आज उनके वंशज सरनेम हे और ये सिंधल कुल मे कूवरी कमलावती हुवे जिनका विवाह राठौड़ कुल के (जुजार ) इस्ट देव पाबुजी के साथ हुवा ? 
और सिंधलो की कूवरी नेतलदे के साथ श्री रामदेवजी का विवाह हुवा ?
और चामकदेव जी के 
वंश मे भी बहोत से सरनेम के सोढ़ा हुवे चामक देव जी के वंश मे देव शिरोमणि पिथौराजी दादा हुवे ? 
विगतवार 
👉सिंधल जी (परिवार )
सिंधल सोढ़ा 
👉चामकदेव जी (परिवार )

भाण सोढ़ा (पिथौरा पौत्र )
संगार्सिसोढ़ा . ! राजिया सोढ़ा ! केलण सोढ़ा ! नागड सोढ़ा ! कितल सोढ़ा ! आस्कण सोढ़ा ! भिभा सोढ़ा ! धोधा सोढ़ा ! करण सोढ़ा ! पाता सोढ़ा ! भारमल सोढ़ा ! विरमदेव सोढ़ा ! गजूँ सोढ़ा ! वीरधमल सोढ़ा ! कीता  सोढ़ा ! रता सोढ़ा ! थिरिया सोढ़ा ! सागराई वेरसी सोढ़ा ! बरजांग  सोढ़ा ! वीजा सोढ़ा ! ऊदा सोढ़ा ! सादुल सोढ़ा ! भुजबल सोढ़ा ! मडा सोढ़ा ! बिच्छु  सोढ़ा ! वीदा सोढ़ा ! नरसिं सोढ़ा ! जेसा सोढ़ा ! सुरज्मल सोढ़ा ! मांनसिंह सोढ़ा ! सुरतान सोढ़ा ! भूपत सोढ़ा ! भोजराज़ सोढ़ा ! विजेराज़ सोढ़ा ! वागा सोढ़ा ! दुदा सोढ़ा ! राम सोढ़ा ! वेरसी सोढ़ा ! गंगदास सोढ़ा ! डला सोढ़ा ! अर्जण सोढ़ा ! लूणकर सोढ़ा ! म्याज़ल सोढ़ा ! नरा सोढ़ा ! नबा सोढ़ा ! मालदेवजी सोढ़ा ! तेजू सोढ़ा ! सिंगरपाल सोढ़ा ! बूटासिंह सोढ़ा ! ज़डपा सोढ़ा ! मालदेव सोढ़ा (पारकरया ) ! लूंभा सोढ़ा ! मूलराज़ सोढ़ा ! अडॉता सोढ़ा ! अजरोईया सोढ़ा ! तडगामा सोढ़ा ! पाटीगडा सोढ़ा ! नडा सोढ़ा ! अखा सोढ़ा ! मांना सोढ़ा ! रायमल सोढ़ा ! देवराज़ सोढ़ा ! लूंणा सोढ़ा ! संतला सोढ़ा ! धारा सोढ़ा ! सूगल सोढ़ा ! देवपाल सोढ़ा ! भोपाल सोढ़ा ! अप सोढ़ा ! कप सोढ़ा ! वडेरिया सोढ़ा ! अलण सोढ़ा ! मालण सोढ़ा ! गज़पाल सोढ़ा ! बहूपाल सोढ़ा ! सरु चा सोढ़ा ! शीवदास सोढ़ा 
और गुजरात मूली 
लखधीरोत सोढ़ा




नोट -इस पोस्ट में कोई खाप छुट भी गयी हो त्रुटिया हो सकती है | अगर आपको कही ऐसा लगे तो आप सुधार करा सकते है |

 https://youtu.be/pC5Tnjgwvy8