बुधवार, 19 अप्रैल 2017

घात्यो नथमल बोरड़की रै घाव (भादरिया माता आण में बोरडी पेड़ काटने के बदले सोने का पेड़ चढ़ाना पड़ा तत्कालीन दीवान नथमल को )

‘घात्यौ नथमल बोरड़की रै घाव’

लगभग डेढ़ सदी पुरानी कहानी है यह | राजस्थान के गांवों में पर्यावरण संरक्षण का अपना लौकिक तरीका था| देवी-देवताओं के नाम से ओरण (बन-भूमि) छोड़े जाते थे| पाबूजी, रामदेवजी, तेजाजी, झरड़ाजी, गोगाजी, आईनाथजी और अन्य स्थानीय देवी-देवता व जूंझार-भोमियों (गायों व भूमि की रक्षा लिए हुए शहीद)के नाम पर ये ओरण संरक्षित होते थे | इसलिए लोग उन जगहों से तिनका भी नहीं तोड़ते थे, लकड़ी काटने का तो सवाल ही नहीं उठता था | इसी तरह गायों के चरने के लिए गोचर भूमि और उनके बैठने के लिए खैड़ा (गाँव के चारों ओर की जमीन) और तांडा (कुओं व तालाबों के पास की जमीन) होता था|  तालाबों के आगोरों (पानी आवक का क्षेत्र) में कोई भी शौचादि नहीं जा सकता था | बच्चों के खेलने और बुजुर्ग लोगों के बंतळ- हथाई के लिए खुला स्थान बाखळ होता था | इन सभी स्थानों पर कोई न तो बस सकता था और न ही कोई सार्वजनिक स्थान खड़ा किया जा सकता था | ब्रिटिश संविधान की तरह गाँवों का अपना अलिखित संविधान होता था | इस संविधान का उल्लंघन  करनेवाले को दंडित किया जाता था |
   जैसलमेर रियासत में एक गाँव था – ‘भादरिया’ | इस गाँव में भाटी राजपूतों की कुलदेवी का देवालय था | लोक में ‘सप्तमातृका’ के रूप में पूज्य यह देवी आईनाथजी के नाम से जानी जाती है | ‘आई’ का अर्थ माँ के संदर्भ में गुजरात, महाराष्ट्र से लेकर धुर पूर्व में आसाम तक में प्रयोग में आता है | थार में यह देवी के अर्थ में रूढ़ है | नाथ सम्प्रदाय का प्रभाव होने से आईनाथ शब्द आदरसूचक रूप में लोकमान्य है | इस देवी के नाम से ‘भादरिया’ गाँव के आसपास विशाल ओरण है | रियासत के राजा की भी यही कुलदेवी थी |
  इसी जैसलमेर रियासत का दीवान था मोहता नथमल | जैसलमेर जाने वाले पर्यटकों ने इस दीवान की भव्य हवेली अवश्य देखी होगी – ‘दीवान नथमल की हवेली’ | इसी दीवान की कहानी है यह | दीवान ने अपने पुत्र के पालने के लिए पेड़ काटने का आदेश दिया | दीवान के कारिंदे भादरिया के ओरण से पेड़ काटकर ले आए | उस ओरण से पेड़ काटकर ले गए जिस ओरण से राजा तक पेड़ नहीं काट सकता था | प्रजा की पुकार राजा तक पहुंची | राजा ने दीवान को इस कृत्य के लिए फटकारा और देवी के देवालय में सोने का पेड़ चढ़ाने का आदेश दिया | नथमल ने देवालय पहुँच कर माफ़ी मांगी और देवी के देवालय में सोने का पेड़ चढ़ाया |
    इस घटना को लोक-कवि ने एक अपने अंदाज में वर्णित किया | नथमल के नाम से देवी आईनाथजी की एक ‘चिरजा’ (प्रार्थना) रची, जो लोकगीत का रूप ले चुकी है | इस ‘चिरजा’ में वर्णित है कि दीवान नथमल के घर में पुत्र जन्मा | हरख-बधावे हुए | खुशियाँ मनाई गई | घर में एक पालने की जरूरत महसूस की गई |
नथमल ने खाती के बेटे को लुहार के घर जाकर एक बीजलसार(बिजली की तरह धारदार) कुल्हाड़ी लेकर आने को कहा | कुल्हाड़ी लेकर नथमल भादरिये के ओरण में पहुंचा और बोरड़ी (बेर का पेड़) को काटने लगा | लोक रचित इस गीत में खुद नथमल पेड़ काट रहा है, दीवान का कारिन्दा नहीं –
‘घात्यौ नथमल बोरड़की रै घाव,
बोरड़की करळाई नैनैबाळ ज्यौं |
बोरड़की करळाई कायर मोर ज्यौं |
( नथमल ने जब बोरड़ी पर कुल्हाड़ी से वार किया तो बोरड़ी का पेड़ नन्हे बालक की तरह विलाप करने लगा | वह पेड़ करुण स्वर में मोर की तरह कुरळाया | )
पेड़ नथमल को शाप देते हुए कहता है –
‘मरजौ नथमल थारोड़ी घरनार
पाळणियै में मरज्यौ मोभी डीकरौ
झोकड़ल्यौं में मरज्यौ भूरियौ ऊँठ
पैंखड़लयां में मरज्यौ भूरोड़ी भैंसड़ी |
( हे नथमल ! तेरी घरवाली मर जाए | पालने में अठखेलियाँ करता तेरा ज्येष्ठ बच्चा मर जाए | अपने स्थान पर बैठा तेरा ऊँट मर जाए | पांवों में सांकल डाली तेरी भैंस मर जाए | ) और फिर नथमल के घर में यही सब घटित हुआ | दीवान मुंह में घास डालकर माफीनामा लेकर भादरिये के देवालय पहुंचा | और फिर उसने वह सब जुर्म कबूल किया | उसने सोने का पेड़ देवी को चढ़ाया तब उसके घर में स्थितियाँ सामान्य हुईं |
‘जीवौ रे नथमल थारोड़ी घरनार
पाळणियै में हींडै मोभी डीकरौ
झोकड़ल्यौं में बैठौ भूरियौ ऊँठ
पैंखड़लयां में रिड़कै भूरोड़ी भैंसड़ी |
( हे नथमल ! तेरी घरवाली सलामत रहे | पालने में तेरा बड़ा बच्चा किलोळ करता रहे | तेरा ऊँट अपनी जगह सलामत रहे | तेरी भैंस अपनी जगह बंधी मिले | )
इस तरह नथमल के घर की स्थितियाँ सामान्य हुईं | इस चिरजा की खूबसूरती यह है कि लोक कवि ने नथमल को एक सामान्य गृहस्थी की तरह बताया है जिसके घर में स्त्री, बच्चा, ऊँट और भैंस होती है | यहाँ गाय की जगह लोक-कवि दीवान के कारण भैंस लाया है, नहीं तो भैंस जैसलमेर में विरल पशु है | यह कथा पर्यावरण संरक्षण की लौकिक स्थितियों की जीती जागती तस्वीर है जब रियासत का दीवान जैसा अधिकार संपन्न व्यक्ति भी दण्डित किया गया | लोकतंत्र में इन  कथाओं का पर्यावरण संरक्षण में महत्व  स्वयं सिद्ध है |
- आईदान सिंह जी भाटी

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