मांगलिया (सिसोदिया)---इतिहास के आईने में –आईदानसिंह भाटी
राजस्थान की आंचलिक संस्कृतियां बड़ी समृद्ध और रोचक रही है | इस रोचकता में गाँवों के नाम और उनका इतिहास भी जुड़ा हुआ है | राजस्थान में जोधपुर के बसने से पूर्व का वृतांत है यह | मारवाड़ में बप्पा रावल के पुत्र आणंददे के वंशज मांगलिया कहलाए | संभवत: आणंददे के वंशजों में कोई मंगल हुआ, जिससे उस शाखा का नाम मांगलिया पड़ा | बप्पा रावल के समय संभवत: आणंददे मारवाड़ आ गया होगा | इस मांगलियावाटी की राजधानी आज का सुप्रसिद्ध नगर-कस्बा खींवसर था ,जिसे खींवसी मांगलिया ने बसाया था | इसी खींवसी मांगलिया की राजकुमारी लखांदे जैसलमेर के रावल दूदा अथवा दुरजनसाल को ब्याही गई थी | यह रानी जैसलमेर के द्वितीय साके के समय अपने पीहर थी जो सांदू हूंफा अथवा हूँफकरण के साथ अपने पति का शीश ढूँढने जैसलमेर गई थी और तब सांदू हूंफा ने अपनी ओजस्वी वाणी से लोकप्रसिद्धि के अनुसार कटे मुंड को बोलने के लिए विवश किया था | इस संबंध में जोधपुर महाराजा मानसिंह जी का सुप्रसिद्ध दोहा है –
सांदू हूंफे सेवियो, साहब दुरजनसल्ल |
बिडदा माथो बोलियो, गीतां, दूहां गल्ल ||
रावल मल्लीनाथजी के छोटे भाई राव वीरमदेव की बड़ी रानी मांगलियाणी ही थी |
यह मांगलिया शाखा जोधपुर राज्य की स्थापना से लेकर खींवसर उनके हाथ से निकलने के बाद तक महत्वपूर्ण रही | मांगलिया मेहाजी तो मारवाड़ के पांच पीरों में सुप्रसिद्द है –
‘पाबू, हडबू , रामदे , मांगलिया मेहा |’
इन मेहाजी के सम्बन्ध में इतिहासकारों ने जबरदस्त विभ्रम फैलाया | उन्हें मेहराज सांखला के साथ जोड़ दिया | मेरी समझ से इस विभ्रम को मैंने कई बार इतिहासविदों के सामने मौखिक रूप से तोड़ने की कोशिश की, लेकिन ढाक के तीन पात की तरह मामला आगे नहीं बढ़ा | अंतत:मेरे आग्रह को स्वीकार कर श्री गिरधरदानजी रतनू दासोडी ने एक विस्तृत-लेख परम्परा – पत्रिका में लिख कर इस भ्रम को तोडा | इस लेख में मेहाजी को इतिहास के साथ जोड़कर उन विभ्रमों पर भी बात की, जो लोक में मौखिक और साहित्यिक रूप से प्रचलित रहे हैं |
इतिहास विश्रुत भगवती करनीजी का पीहर सुवाप मांगलियावाटी का ही हिस्सा रहा है जो मांगलियों द्वारा ही भगवती करनीजी के पिताजी को जागीर के रूप में दिया गया था |
इसी शाखा के वीर संवत १६३२ में जब बादशाह अकबर ने कुम्भलनेर लिया तब मांगलिया जैतसी और उसका काका जैमल वहां काम आए थे|
--(बाँकीदास री ख्यात –पेज-९३)
मांगलिया भादा बावड़ी के निवासी ने राव मालदेव को शिकारी कुत्ते भेंट किये थे | भादा के बेटे देवाको राव मालदेव ने खूब मान दिया और सिवाणे को जेतमालोतों से लेकर मांगलिया देवा को दिया | देवा ने सिवाणेमें ही राम किया |
देवा का बेटा वीरमदे बड़ा सपूत हुआ | राव मालदेवजी ने मेड़ता वीरमदे देवावत मांगलिया को भेंट तब किया जब उनकी मेड़तियों से अनबन चल रही थी | |(बाँकीदास री ख्यात-पेज ६०)
इन्हीं का एक भाई राव मालदेव के समय सिवाना का किलेदार था- किल्ला अथवा कल्याणसी मांगलिया | इसने बालोतरा के पास वाला कस्बा कल्याणपुर अपने नाम पर बसाया था | --(राठोड़ों री ख्यात) | इस तथ्य को आज बहुत कम लोग जानते हैं, क्योकि आज वहां मांगलियों का कोई बड़ा वजूद ही नहीं हैं |
खींवसर आसोप भी जब साळ-कटारी में करमसोतों को मिले तब मांगलियों का केंद्र बापीणी बना | मांगलिया भोज हमीरोत जिसकी बेटी दूल्हदे की शादी करमसी जोधावत के साथ हुई थी | इससे पंचायण , धनराज, नारायणऔर पीथूराव चार बेटे हुए | ((बाँकीदास री ख्यात-६७)
खीवसर मांगलियों के हाथ से निकलने के बाद खींवसर के बसाने की कल्पित कहानियाँ गढ़ी गई , जैसा कि मांगलियावास (जोकि जयपुर रोड पर है, जहां प्रसिद्द कल्प-वृक्ष है | ) कस्बे के लिए राज-स्तरीय अखबारों में मैंने पढ़ा है की यह नाम ‘मांग कर लिया गया’ के अर्थ में पडा है ,जबकि यह मांगलियोंके किसी नायक के द्वारा बसाया क़स्बा है|
और भी बातें सिसोदियों की इस शाखा से जुड़ी है,इतिहास के अध्ययन के बाद फिर कभी |
राजस्थान की आंचलिक संस्कृतियां बड़ी समृद्ध और रोचक रही है | इस रोचकता में गाँवों के नाम और उनका इतिहास भी जुड़ा हुआ है | राजस्थान में जोधपुर के बसने से पूर्व का वृतांत है यह | मारवाड़ में बप्पा रावल के पुत्र आणंददे के वंशज मांगलिया कहलाए | संभवत: आणंददे के वंशजों में कोई मंगल हुआ, जिससे उस शाखा का नाम मांगलिया पड़ा | बप्पा रावल के समय संभवत: आणंददे मारवाड़ आ गया होगा | इस मांगलियावाटी की राजधानी आज का सुप्रसिद्ध नगर-कस्बा खींवसर था ,जिसे खींवसी मांगलिया ने बसाया था | इसी खींवसी मांगलिया की राजकुमारी लखांदे जैसलमेर के रावल दूदा अथवा दुरजनसाल को ब्याही गई थी | यह रानी जैसलमेर के द्वितीय साके के समय अपने पीहर थी जो सांदू हूंफा अथवा हूँफकरण के साथ अपने पति का शीश ढूँढने जैसलमेर गई थी और तब सांदू हूंफा ने अपनी ओजस्वी वाणी से लोकप्रसिद्धि के अनुसार कटे मुंड को बोलने के लिए विवश किया था | इस संबंध में जोधपुर महाराजा मानसिंह जी का सुप्रसिद्ध दोहा है –
सांदू हूंफे सेवियो, साहब दुरजनसल्ल |
बिडदा माथो बोलियो, गीतां, दूहां गल्ल ||
रावल मल्लीनाथजी के छोटे भाई राव वीरमदेव की बड़ी रानी मांगलियाणी ही थी |
यह मांगलिया शाखा जोधपुर राज्य की स्थापना से लेकर खींवसर उनके हाथ से निकलने के बाद तक महत्वपूर्ण रही | मांगलिया मेहाजी तो मारवाड़ के पांच पीरों में सुप्रसिद्द है –
‘पाबू, हडबू , रामदे , मांगलिया मेहा |’
इन मेहाजी के सम्बन्ध में इतिहासकारों ने जबरदस्त विभ्रम फैलाया | उन्हें मेहराज सांखला के साथ जोड़ दिया | मेरी समझ से इस विभ्रम को मैंने कई बार इतिहासविदों के सामने मौखिक रूप से तोड़ने की कोशिश की, लेकिन ढाक के तीन पात की तरह मामला आगे नहीं बढ़ा | अंतत:मेरे आग्रह को स्वीकार कर श्री गिरधरदानजी रतनू दासोडी ने एक विस्तृत-लेख परम्परा – पत्रिका में लिख कर इस भ्रम को तोडा | इस लेख में मेहाजी को इतिहास के साथ जोड़कर उन विभ्रमों पर भी बात की, जो लोक में मौखिक और साहित्यिक रूप से प्रचलित रहे हैं |
इतिहास विश्रुत भगवती करनीजी का पीहर सुवाप मांगलियावाटी का ही हिस्सा रहा है जो मांगलियों द्वारा ही भगवती करनीजी के पिताजी को जागीर के रूप में दिया गया था |
इसी शाखा के वीर संवत १६३२ में जब बादशाह अकबर ने कुम्भलनेर लिया तब मांगलिया जैतसी और उसका काका जैमल वहां काम आए थे|
--(बाँकीदास री ख्यात –पेज-९३)
मांगलिया भादा बावड़ी के निवासी ने राव मालदेव को शिकारी कुत्ते भेंट किये थे | भादा के बेटे देवाको राव मालदेव ने खूब मान दिया और सिवाणे को जेतमालोतों से लेकर मांगलिया देवा को दिया | देवा ने सिवाणेमें ही राम किया |
देवा का बेटा वीरमदे बड़ा सपूत हुआ | राव मालदेवजी ने मेड़ता वीरमदे देवावत मांगलिया को भेंट तब किया जब उनकी मेड़तियों से अनबन चल रही थी | |(बाँकीदास री ख्यात-पेज ६०)
इन्हीं का एक भाई राव मालदेव के समय सिवाना का किलेदार था- किल्ला अथवा कल्याणसी मांगलिया | इसने बालोतरा के पास वाला कस्बा कल्याणपुर अपने नाम पर बसाया था | --(राठोड़ों री ख्यात) | इस तथ्य को आज बहुत कम लोग जानते हैं, क्योकि आज वहां मांगलियों का कोई बड़ा वजूद ही नहीं हैं |
खींवसर आसोप भी जब साळ-कटारी में करमसोतों को मिले तब मांगलियों का केंद्र बापीणी बना | मांगलिया भोज हमीरोत जिसकी बेटी दूल्हदे की शादी करमसी जोधावत के साथ हुई थी | इससे पंचायण , धनराज, नारायणऔर पीथूराव चार बेटे हुए | ((बाँकीदास री ख्यात-६७)
खीवसर मांगलियों के हाथ से निकलने के बाद खींवसर के बसाने की कल्पित कहानियाँ गढ़ी गई , जैसा कि मांगलियावास (जोकि जयपुर रोड पर है, जहां प्रसिद्द कल्प-वृक्ष है | ) कस्बे के लिए राज-स्तरीय अखबारों में मैंने पढ़ा है की यह नाम ‘मांग कर लिया गया’ के अर्थ में पडा है ,जबकि यह मांगलियोंके किसी नायक के द्वारा बसाया क़स्बा है|
और भी बातें सिसोदियों की इस शाखा से जुड़ी है,इतिहास के अध्ययन के बाद फिर कभी |
सारद खम्मा घणी होकम, हृदय से साधुवाद ।
जवाब देंहटाएंहोकम जै माताजी
हटाएंइतिहास की छोटी सी किन्तु सुंदर झांकी, साधुवाद
जवाब देंहटाएंजय माताजी की होकम
जवाब देंहटाएंकुचेरा के आहड़ा गहलोतो की एक शाखा ही है क्या मांगलिया या अलग है?
अलग है।
हटाएंMangliya or Ahada dono Gahlot h khamp alag h
हटाएंSIR , Mangaiya and managliya is same or different ? Please guide
जवाब देंहटाएंशानदार लेखनी और इतिहासकारों का सामाजिक कर्तव्य भी है कि लोगों को सही दिशा और दशा दें आपका बहुत-बहुत आभार
जवाब देंहटाएंमेहाजी के पिताजी का नाम किलू करणोत था जबकी करणोत तो राठोड होते हैं तो मेहाजी माँगलिया केसे इस भ्रम को इतिहासकार दूर करे
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
हटाएंमांगलिया गौत्र या शाखा क्या राजपूतों में होती h ?
हटाएंor होती h to मांगलिया राजपूत आज कहां h ? rajasthan ke कोन से क्षेत्र में पाए जाते h
kripya btane ka kast kare 🙏
गोत्र सिसोदिया, यह राजपूत शाखा हैं, मांगलिया जाति ओसियां (जोधपुर) और बापिणी (जोधपुर) में पाए जाते है
हटाएंMehaji mangliya ke pitaji Khivsar ke Rana kelu ji or dadaji Rana Karansi ji
हटाएंaabhar hukm 🤟🙏🙏
जवाब देंहटाएंJai matajiri sa hukum.achi jankari dirai
जवाब देंहटाएंJodhpur main he goyal sisodiya bhi hai kya wah bhi mangliya sisodiya ki he ek khanp hai ??
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