गुरुवार, 8 जून 2017

पीरो के पीर बाबा रामदेव पीर रुनिचा

!!घणी घणी खम्मा राजा रामदेवजी ने !!
|| कौन थे राजा अजमल जी ||
!! क्यों कहते हैं बाबा !!
!! कौन थी डाली बाई !!
||श्री बाबा रामदेवजी की कथा
भगवान श्री रामदेव का अवतार संवत् १४६१ भांदों सुदी दोज शनिवार को पोखरण के तोमरवंशी राजा अजमल के यहां हुआ था। वह भगवान श्री कृष्ण के अनन्य भक्त और धर्मपरायण राजा थे, लेकिन नि:संतान होने के कारण दुखी रहते थे। नि:संतान होने के कारण उन्होंने द्वारकाधीश यात्रा के दौरान समुद्र में देह त्यागने का संकल्प किया और कूद गए। लेकिन जब आंख खुली तो वह द्वारकाधीश श्रीकृष्ण के सामने थे। भगवान श्रीकृष्ण ने उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर बरदान मांगने को कहा तो उन्होंने भगवान श्रीकृष्ण जैसा पुत्र मांगा।


श्रीकृष्ण ने स्वंय बलरामजी के साथ उनके घर अवतरित होने का वरदान दिया। इसी वरदान के कारण पहले बलरामजी ने वीरमदेव के रूप में राजा अजमल की पत्नि मैढ़ादे के गर्भ से जन्म लिया, इसके नौ माह बाद भगवानश्रीकृष्ण श्रीरामदेव के रूप से पालने में अवतरित हुए। भगवान ने बालकाल से ही अपनी बाल लीलाएं दिखाना प्रारंभ की। पालने में प्रकट होने के बाद माता मैनादे को चमत्कार दिखाया, उनके आंचल से दूध की धार भगवान रामदेव के मुख में गिरने लगी और चूल्हे पर रखे बर्तन से उफन-उफन कर दूध बाहर गिर रहा था, उसे पालने से ही भुजा पसार कर उतार दिया। मां मैनादे को चतुरभुज रूप में दर्शन दिया। पांच वर्ष की उम्र में दर्जी रूपा द्वारा बनाए कपड़े के घोड़े को आकाश में उड़ाया वह तुरंत ही सजीव नीला घोड़ा हो गया। भैरव राक्षस को इसका पता चला तो उसने छोटे भाई आदू को रामदेव और वीरमदेव को पकडऩे भेजा, तब भगवान श्रीरामदेव ने घोड़े पर सवार होकर आदू नामक राक्षस को भाले से मारा।आदू के मरने के बाद उसने राज्य की जनता पर अत्याचार करना प्रारंभ कर दिया। श्री रामदेव ने भैरव राक्षस का वध कर राज्य की प्रजा को अत्याचारों से मुक्त कराया। व्यापारी लाखा बंजारा बैल गाडिय़ों में मिश्री भरकर पोखरण की ओर जा रहा था, तभी रास्ते में उसकी भेंट घोड़े पर आ रहे भगवान रामदेव से हुई, उन्होंने पूछा गाडिय़ों में क्या है तब लाखा ने कहा बाबजी नमक भरा है तो रामदेव जी ने कहा जैसी तेरी भावना। यह कहते ही गाडिय़ों की सारी मिश्री नमक बन गई। तब लाखा बंजारे को अपने झूठ पर पश्चाताप हुआ, उसने श्री रामदेव से माफी मांगी तब उन्होंने नमक को मिश्री बना दिया। बोहिता राजसेठ की नाव को समुद्र के तूफान से निकालकर किनारे लगाया। स्वारकीया भगवान रामदेव का सखा था उसकी मृत्यु शर्प के डंसने से हो गई तब श्री रामदेव जी ने उसका नाम पुकारा वह तुरंत ही उठकर बैठ गया। दला सेठ नि:संतान था, साधू संतों की सेवा उसका नित्य काम था भगवान श्री रामदेव की कृपा से उसे पुत्र प्राप्त हुआ उसने रूढि़चा स पत्नि बच्चे के साथ पैदल यात्रा की रास्ते में उसे लुटेरों ने मार दिया सिर धड़ से अलग कर दिया, भगवान श्रीरामदेव की कृपा से पुन: उसका सिर धड़ से जुड़ गया। भगवान रामदेव कलयुग के अवतारी हैं शेष शैय्या पर विराजमान महाशक्ति विष्णु का अवतार भगवान कृष्ण व भगवान राम का था। उसी शक्ति ने कलयुग में अवतार भगवान रामदेव के रुप में लिया था। उन्होंने अंधों को आंखें दी, कोढिय़ों का कोढ़ ठीक किया, लंगड़ों को चलाया। बाद में उन्होंने पोखरण राज्य अपनी बहिन लच्छाबाई को दहेज में दे दिया और रूढि़चा के राजा बने। यहीं पर संवत् १५१५ भादों सुदी ग्याहरस को ५३ वर्ष की आयु में जीवित समाधि ली। भगवान रामदेव की कृपा से आज भी उनके दरबार में अर्जी लगाने पर पीडि़त लोग ठीक हो रहे हैं।
!! कौन थे राजा अजमल !!
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राजस्थान में पोखरण के राजा श्री अजमल द्वापर में अर्जुन थे। उनका पूरा समय परिवार विवाद ,राजपाठ की लड़ाई में चला गया, भगवान कृष्ण का सानिध्य होते हुए भी वह उनकी सेवा नहीं कर सके। भगवान श्री कृष्ण जब मृत्यु लोक से वापिस अपने धाम जाने लगे तब अर्जुन ने कहा था कि हे भगवान आपका छत्रछाया पाकर भी में इस जन्म में आपकी सेवा नहीं कर पाया। तब भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन से कहा उसे कलयुग में सेवा करने का अवसर देंगे। कलयुग में वही अर्जुन पोखरण के तोमरवंशी राजा हुए और भगवान श्री कृष्ण की अनन्य भक्ति की, श्री कृष्ण के दर्शन पाए। उन जैसा पुत्र मांगा इसी कारण भगवान श्री कृष्ण उनके घर श्रीरामदेव जी के रूप में पुत्र बनकर अवतरित हुए। सिर्फ तीन प्रतिशत ठीक नहीं होंगे भगवान रामदेव का कहना है कि उनके दरबार में आने वाले ९७ प्रतिशत पीडि़त ठीक होंगे, लेकिन तीन प्रतिशत वे लोग ठीक नहीं होंगे जो भगवान पर विश्वास नहीं रखते।
!! क्यों कहते हैं बाबा !!
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भगवान रामदेव की परीक्षा लेने मक्का के पीर आए थे, जब उन्होंने परीक्षा के बाद वापिस जाने के लिए आज्ञा मांगी तो श्रीरामदेव जी ने कहा कि अब तुम वापिस नहीं जाओगे, मेरे साथ ही रहोगे। क्योंकि पीरों को बाबा कहा जाता है। श्रीरामदेव तो पीरों के भी पीर हैं, इसलिए उन्हें भी लोग बाबा कहकर पुकारते हैं।रामा धणी के नाम से पुकारते हैं।
!! कौन थीं डॉली बाई !!
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द्वापर में भगवान श्री कृष्ण की भक्त कुबजा थीं भगवान ने उनकी भक्ति के कारण उनकी कूबड़ ठीक कर स्वास्थ्य शरीर किया था। वही कुबजा द्वारकाधीश के श्री रामदेव अवतार में डालीबाई बनीं और भगवान श्रीरामदेव की भक्ति की। उनको भगवान ने भक्त महासति डालीबाई का पद दिया।
|| समाधि ||
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बाबा रामदेवजी महाराज ने १५२५ को भादवा सुदी ११ के दिन रुणिचा गांव के राम सरोवर पर सब रुणिचा वासियों को समझाया तत्पश्चात आपने समाधी ली|रामदेव जी ने समाधी में खड़े होकर सब के प्रति अपने अन्तिम उपदेश देते हुए कहा प्रति माह की शुक्ल पक्ष की दूज को पूज पाठ, भजन कीर्तन करके पर्वोत्सव मनाना, रात्रि जागरण करना। प्रतिवर्ष मेरे जन्मोत्सव के उपलक्ष में तथा अन्तर्ध्यान समाधि होने की स्मृति में मेरे समाधि स्तर पर मेला लगेगा। मेरे समाधी पूजन में भ्रान्ति व भेद भाव मत रखना। मैं सदैव अपने भक्तों के साथ रहुँगा। इस प्रकार श्री रामदेव जी महाराज ने समाधी ली।प्रभु ने समाधी ली और प्रजा में शोक संचार हो गया, उनमे बेचैनी बढ़ गयी| दुखित होकर सभी पुकारने लगे और जब प्रजा से रहा नहीं गया तो उनहोंने समाधी को खोदा| समाधी खोदते ही उस जगह पर फूल मिले और सभी प्रजा ने नमन कीया और उस जगह पर बाबा कि समाधी बनाई |
॥ घणी घणी खम्मा राजा रामदेवजी ने

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