मंगलवार, 23 मई 2017

रजपुतानी(प्राण जाये पर वचन न जाये)मार्मिक शौर्यगाथा 1 सोढा राजपूत और रजपुतानी की

रेत रा टीबा बळरिया । ऊनी ऊनी लू असी चाल री जो काना रा केसा ने बाळती नीसर जावै । नीचै धरती तपरी, उंचो आकास् बळरियों । खैजडा री छाया में बैठयो सोढो जवान भीतर सू अर बाहर सूं दोनं कानी सूं दाझं रियो । बारला ताप सुं बती हिया में सळगती होली री झाला बाळ री । दुपैरी रा सूरज री सूधी मुंडा साम्हीं किरणों आंख्या में गबोड़ा पाड़ री पण वींनै ईं री सुध नी। वो तो ऊंडा विचार में अस्यों डूबरियों के चारुं दिसा एक सी लाग री । आज वीरे होवण वाला सासरा सुं सुसरा रो सनेसो ले आदमी आयो,

"परणणो व्हे तो पनरासौ रिपिया तीन दिनों में आय गिणा जावो, नी' तो आखा तीज नै थांरी मांग रो दूजा रे सागैं बियाब करदांला ।

"सुणतां ही सोढा जवान री आंख्या में झालां  उठी। अपने आप हाथ तरवार री मूठ पै पड़ग्यो। दाता सूं होठा ने काट रैग्यो । वीं री मांग दूसरा की हो जासी, जीरी खोळ वींरी मां रिपियो नारेळ घाल आज सुं दस बरसों पैला भरी अर वांरो बियाब कर देणे रा मनंसूबा करता करता मां बाप दोई मरग्या। घर में नैनंपण पड़गी । कुण खेती ,बाडी, गाय भैस सम्भलतो । अबै पनरासौ रिपिया कटा सू लावै ?"ऐ रिपिया दीधा बिना वींरी मांग दूसरा री होजासी, जींरा सपना दस दस वरसा सुं वो देखतो आयो, वीं मांग नै ईज आखा तीज ने दूजा ले लारै कर देला ।
सोढा जवान री आख्या में खून उतर आयो । आज तक  कदे ही असी व्ही है मांग रे वास्ते तो माथो कट जावै, म्हूँ जीवतो फिरूँ अर म्हारी मांग ने दूजो परनै ,हरगिज नीं।
 "बोहरा काका, म्हारी लाज थारे हाथा है ।"
"लाज तो म्हे घणी ही राखी है । थुं बता कस्या खेता पै पनरासौ गिण दूँ ?
अडानो कायीं राखैला ? "
"म्हारे कने हे ही कायीं ? रजपूत री आबरु एक तरवार खांपो म्हारे बच्यो है ।''
"तो भाई, कीं दूजा बोहरा रो बारणो देख । "
सोढो तड़फग्यो। देख काका, थे म्हारा घर री सली,सली  म्हारा नैनपण में झूठा सांचा खत मांड मांड लेय लीधी । म्हारा घर में ठीकरों तक नी छोडूयो । म्हें थने सारो दीधो ,अर जो ही माँगतो व्हे देवण ने त्यार हू । पण ई वगत , म्हारा घराना री लाज राखलै । जीरी मांग दूजारे लारै परी जावै तो जीवतो ही मरयां बराबर है । ई तरवार,
जगदम्बा ने माथै मेल सोगन खावूं थारो पीसो पीसो दूध सूं धोए चुकावूं । थारे दाय आवै जतरौ व्याज मांडले । ई वेलां म्हने रिपिया गिण दे ।
"रज़पूत रो जायो व्हे तो ये अस्या कोल करजे। म्हूँ खत पै जो मांड दू वीं पै थू  दसगत कर देवैला कैं ? "

"माथो चावे तो दे दूं पण अवार म्हारी राज राखलै । "
बाणिये खत मांड'र आगो कीधो । कान पै मैली लगी कलम ने उठाय हाथ में झेलाई ।

"बांचले खत ने, छाती व्है अर असल रजपूत व्हे तो दसगत करजे ।''
खत बांच्यो, मांड राख्यो "ये रिपिया व्याज सूधी नीं चुकाउ  जतरे म्हारी परणी लगी ने बेन ज्यूँ समझुलां ।

होठां ने दांता बीचे दबाय राती राती झाला निकळती आंख्या सूं झांकतो दसगत कर दीधा ।

बरसां सुं सोढा रो सूनो घर आज बस्यो । आज वींरी मेड़ी में दीवो बळयो । दीमकां लाग्यो,, लेवड़ा पड्यो घर,लींपयो चुंप्यो हंस रीयो ।घणा बरसां पछै आज वीरे घर में घुंघरा री छम छम व्ही ।पीयर सूं डायजा में आयोड़ा गाड़ो भरया असबाब सूं गिरस्थि जमाई ।सोढो जीमवा बैठ्यो ,बींनणी हाथ सूं पोयोडी चीडा री बींझणी ले पवन घालवा लागी।दांत रो चूडो पेरया हाथां सूं परूस री।सारो घर आज कायीं रो कायीं सोढा नै लाग रियो । ऱजपूताणी री आंख्या में  नेह ऊझल रियों पण सोढा री आंख्या गम्भीर ।वा परुसती री यो जीमतो रियो । सोढो बोलणो चावै पण बोलणी आवै नी, वा तो आगे व्हे बोलै ही किण तरह ?खाय, चलू करण लागो, रजपूताणी झट ऊठ लोटा सु हाथा पै पाणी कूढवा लागी, सोढा री नजर घुँघटा में पसीना री बूंदा सूं चमकता मूडा पै पडी,  वींरी आख्या रे आगे बाणिया रो खत भाटा री चट्टान ज्यू ऊभो व्हेम्यो, वीरां हाथ कांपग्या । लोटा सूं पड़ती पाणी री धार जमी' पै बैयगी । रात पड़ी सोने री वैला आईं ।सासरा सूं आयोड़ा ढोल्या पै सूता । झट म्यान सुं तलवार काढ़ दोय जणां रे बीच में मेल,मूंडो फैर सोयग्यो ।

रजपूताणी सगमगी । "यूँ क्यों म्हारा सूं कांई नाराजै हैं "?
एक, दो, तीन, दस पनरा राती बीत्तगी । या हीज तरवार काली नागण ज्यू रोज दोवा रे बीच । दिन में बोले, बात करे जद तो जाने सोढा रे मूंडा सु अमरत झरे ,आंख्या सूं नैह टपके पण रात पडती ही वींज मुंडा सूं एक बोल नी' निकलें, वे हीज आंख्या सामी तक नी झांके । रात भर अता नजदिक'रैवतां थका ही घणा दूर। दिन में घणां दूर रेवतां थकां ही घणां नजीक ।
 रजपुतानी बारीकी सूं सोढा रो ढंग देखे गैंरांई सूं सोचै । वीं  सूं रीयो निं गियो ।ज्यूँ  ही तलवार काढ़ ढोल्या पै सोवा लाम्यो, झुक पग पकड़ लीधा ,
 "म्हारो कायीं देस है ?म्हारा पै नाराज क्यूं ?गलती कीधी तो म्हारा बाप जो थाने  रिपिया सारुं फोडा पाड़या ।" टळ टळ करता आंसूं सोढा रे पगाँ पै जाय पड्या `।
“कुण के म्हूँ थारा पै नाराजं हूं । थुं म्हारी, म्हारा घर री धणियाणी है । आपरा हाथ सुं वींरा हाथां ने पगा सूं दूर  करतो सोढो बोल्यो।
"तो अतरा नजीक रेवतां लगाँ ,म्हासु अतरा दूर क्यों ?''  सोढा रे ललाट पे दो सळ पड़ग्या

" थुं जाणणो ही चावै ? ”
"हा । ''
"तो ले बांच हैं खत ने ' । "
दीवा री बाती ऊंची कर टमटम करता दीवा रा चानणां में खत बांचवा लागी '
ज्यूँ वाँचती गी ज्यूँ वीं रा मूंडा पै जोत सी जागती  गी।आंजस अर संतोस सू वीरों मूंडो चमकवा लाग्यो ।खत झेलाती लगी,बेफिक्री री साँस लेती बोली''ई री कोई चिन्ता नी, म्हनै तो डर हो थांरी नाराजगी रो । वरत पाळणो तो घणो सोरो ।"
दिन उगता ही आपरो छोटो मोटो गैंणोगांठो, माल असबाब रो ढिगलो सोढा रे मूंडा आगे जाय कीधो ,
"ई नै बेच घोडा लावो, करजो उतारनो सबसू पैलो धरम हैं । धरे बैठ्या तो करसा चोखा लागै । रजपूत चाकरी सू सोभा देवै । कोई राजा री जाय चाकरी करां ।

"" थनें पीयर छोड़ दूं ? थुं कठे रेवेला?''
"पीयर क्यूं? जटे थां बटे ही म्हु  दो घोडा ले आवो । "
"पण, पण थुं साथै निभेला कस्या ? "
"क्यूं-नी, म्हु किसी रज़पूत री जायोडी नी के , रज़पूताणी रा चूंख्या नीं के ? म्हने ही थारी नांईं तरवार बांधनो आवै, म्हे ही म्हारा बाप रा घोडा दौड़ाया है । "
"" थारो मन, सोचले । "
"सोच्योडौ है ।"
तेज सुं चमकतो मूंडो सोढो देखतो रैग्यो ।

सवा हाथ सूरज आकास में उंचो चढयो व्हेला। चित्तोड़ री तलेटी सुं कोस दो एक पै दो घोडा एकीबेकी करता चितोड़ साम्हा जाय रिया । दोई जवान स्वार एक सी उमर, एक भी पोसाक पेरियां, घोडा ने रानां नीचै दबाया दौडायां जाय रिया ।
 हाथ रा भाला, उगता सूरज री किरणों सुं चमक चमक कर रिया । कमर में बंधी तरवारां घोडां रे दौड़वा रे साथे साधे रगड़ खाय री । वां मे देख कुण केवै के या में एक स्त्री  है । रज़पूताणी ई वगत  एक सूरापण भरया जवान सी लाग री। दांत रो चूडो पेरया कँवली कलाया  नी री । मजबूत हाथ भाला ने गाढो पकड़यां लगा । लाजती लाजती
धीरे धीरै कोयल री सी बोली री जगी अबै भेरी रो सो कंठ सुर बणाय लीधो । घुंघटा में ही सरम सु लाल  पड़जावा वाला कपोल नीं रिया । सूरज री किरणां री नांईं मुंडा सू तेज फुट रियो । लाली लीधां लोयणां सुं नेहचो ऊफण रियो । जाणे सागी दुरगा रो सरुप व्हे।

घोडा दौड़ता, एक झपाटा में चितोड़ री तलेटी में जाय पूगया। वठी ने राणाजी  दरवाजा बारे निकळया । नजर सुधी वांरा पै पड़ी  दो पल वीं जोडी पैं नजर रुकगी ।
घोडा री लगाम खेंच पूछ्यो

"कस्या रजपूत?''
"' सोढा । "

"अटी नै किसतरै आया हैं ?"

"सेर बाजरे, सारुं, अन्नदाता ! '"

"सिकार में साथेे हाजर व्हे जावो । "

मुजरो कर दोई जवाना घोडा री वाग् मोड़, लारै घोडा कीधा ।

सूरा  रे लारै घुडदौड व्ही । आगे आगै सूर भागरियो वारे लारै हाथ में भाला लीधां सिरदार घोडा नै नटाटूट फेंकरिया । एकल सूर टुंड री मारतो विकराल रुप करयां घोडां रा घेरा नै चीरतो बारे निकल्यो । चारुं कानो हाको व्हीयो, एकल गियो, गियो,
जावा नी' पावै, मारो मारो । "

सगला ही घोडा री रासां एकल कानी मुड़ी जतराक में तो एक घोडों बीजली री नांई आगै आयो, सवार भाला रो वार कीयो जो पेट नै फाड़तो, आंतडां रो ढिग्लो करतो आर पार जाय निकलग्यो  । राणाजी दूरा सु देखतां ही साबासी दीधी ।

पसीनो पुंछतो लगो सवार नीचै उतर मुजरो कर घोडा री पूठ पै पाछो जाय बैठ्यो । कुण सोच सके के भाला रा एक हाथ में एकल सूर ने धुल करवा वाली लुगाई है । राणाजी राजी-व्हे हुकम दीधो "थे वीर हो, आज सू थां दोई भाई म्हारा ढोल्या रा पै 'रा री चाकरी दो । " ' -

खम्मा अन्नदाता कर चाकरी झेली ।

सावण रो मी' नो खळ खळ करता खाळ बैय रिया । तलाब चादर डाक रिया ।डेडका हाका कर रिया । एक तो अंधारो पख, ऊपरे चोमासा री काली रात, काला कांटा बादल छाय रिया । बीजां सलाका लेवे तो असी के आंखयां मींच जावे खोल्या खुलें नी' । इन्दर गाजै तो अस्यो के जाने परथी  ने ही पीस दूं । अंधारी भयावणी रात, हाथ सूं हाथ नी' सूझे । ,राणाजी तो पोढया दोई रजपूत्त पैरोे देवै ।

हाथ में नांगी तरबारां लेय राखी । बीजली चमके जो यांरी नांगी तरवारां वीं चमक मेँ झलमल करे । आधी रात रो वगत राणाजी ने तो नीद आयगी पण राणी री आंखया मैं नीद नी' । सूती सूती कुदरत रा रुप रा अदभुत मेळ ने देख री ।

. दोई रजपूत्त तरवारा काढयां मे'लां रे बारणा आगै ऊभा ।
उत्तर में बिजली चमकी, रजपूताणी नै याद आई म्हारा देस कानी चमक री है ।

ई याद रे लारै केई बातां याद आयगी । आज कमावा खातर यो मरदानों भैस करया विदेस में आधी रात रा पैरो देयरी हूँ । दूजी स्त्रियां घरों में आडा बन्द कर सोय री है ।
म्हु नांगी तलवार लीधां ऊभी रातां काटू। अतराक में कने ही पपैयो बोलयो पी पी
नारी हिरदे री दुरबल्ता जागी । "पी कठे?" " घणोई खने है पण कायीं व्हे ?"म्हारी गिणती नी तो संजोगण में है, नी विजोगण में । म्हासु तो चकवा चकवी  चोखा जो दूरा दूरा  बैठ वियोग काढे । म्हु तो रात दिन साथै रेवती लगी ही विजोगण सु भूंडी। वींरो बांध टूट गियौ । जाय 'र सोढा रा कांधा पै हाथ मेलयो, जाणे बीजली पडी व्हे । दोई जणा कांपग्या । सोढो चेत्यो, "चेतो कर रजपूताणी ।  रजपूताणी समहली । एक निसासो न्हाक्ति बोली,

देस बिया घर पारका पिय बांधव रे भेस ।
जिण दिन जास्या देस में, बांधव पीव करेस ।।

देस छूटगयो परदेस में हां । पति है तो भाई रा रुप में है कदे ही देस में जावांला जद ई नै पति बणांवाला ।

राणी सूती सूती या लीला देख री । दिन ऊंगताँ ही राणी राणाजी ने काहयो "यां सोढा भाइयां बीचै तो कोई भेद है  हैं।  क्यों कांई बात है ?माथो  तोड़ दू ?"
. "तोड़ण री  नी जोड़ण री बात है । या में एक लुगाई है । "
राणी भोली बात मत करो। या सूरता यो आंख रो तौर, या मरदानगी लुगाई में व्हे कदी?"

"आप मानो भले ही मत मानों । या में एक लुगाई है अर कोई आफत में है । ,,

"यां रो पत्तों कस्या लगावा?
"इं री परीक्षा म्हे करुं । आप मेँ’लां में बिराज जावो जाली में सू झांकता रीजो वां दोई भाइयों ने बुलावु ।'

चूल्हा पै दूध चढाय दीधो डावडी ने इसारो कीयो वा बारे निकलगी । दूध उफणतो देख्यो  तो रजपूताणी हाकों कर दीधो "दूध उफ़ने दूध उफने  ।" सोढो आँख रौ ईसारौ करे ज़तरै तो राणीजी बारे निकल पूछ्यो'बेटी  सांच बता तूं कुण है ।म्हारा सूं छिपा मती।

रजपुताणी आंख्या आगै हाथ दे राणीजी री छाती में मुंडो घाल दीधो । "
सोढे सारी बात सुणाई । राणाजी घणां राजी व्हीयां ।
"थांराँ करजा राँ रिपिया ब्याज सूधा म्हु सांडणी सवार रे साथै थारे गाँव भेजू ।थां अठे रेवो गिरस्थि बसाओ।"
सोढे हाथ जोड्या"अन्नदाता रो हुकम माथा पै पण जठा तांई म्हु जाय म्हारा हाथ सुं रिण चुकाय खत फाड़ नी न्हाकु जतरे हुकम री तामील किया व्हे ।म्हाने सीख बगसावो ।

राणाजी करजा राँ रिपिया अर गिरस्थि बसाने रो घणो सारो सामान दे वाने सीख दीधी ।
वीं पड़वा री रात राँ आन्नद रो विचार ही कतरो मीठो है ।

साभार -मांझल रात  रानी लक्ष्मीकुमारी चुंडावत
टँकनकरता-यदुवंसी सुरेन्द्रसिंह भाटी तेजमालता
नॉट-फोटो काल्पनिक है ।

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