"शीश कट्यो धङ लङी भाटी कुळ रो भाण।
बाबरा की बही जो ठिकाणे के समय से ही लिखी जाती थी जो फिलहाल बीकानेर ग्रन्थालय में सुरक्षित है से जानकारी के अनुसार बाबरा के फौजदार भाटी जीवराज सिंह ने विक्रम संवत 1801 में बाबरा ठाकूर अखेराज जी की अनुपस्थिति में मेवाशियों से गायोें को बचाने हेतु अपने प्राणों का बलिदान दिया और बाबरा के प्रथम झुन्झार हुऐ।
करीब 8 माह पूर्व खुदाई के दौरान उनकी 4 फुट बङी प्रतिमा लिलङी नदी के तट पर प्रकट हुई।
वर्तमान में बाबरा के भाटी परिवारों ने नये भव्य स्मारक का निर्माण करा दिनांक 5-06-2017 को विधिवत रूप से पूजा अर्चना करवाकर मूर्ति की स्थापना करवाई।
1833 में बाबरा ठाकूर दौलत सिंह जी के मेङता लङाई में जाने पर उनकी अनुपस्थिति में मराठों ने कर देने से मना कर दिया। तब तत्कालिन फौजदार भाटी जसरूप सिंह जी मराठों से युद्ध में शहीद हुऐ।
उनका स्मारक भी लीलङी नदी के तट पर पहले से स्थित है।
नोट:- बाबरा के भाटी जैसा गोयन्ददासोत नख के है
भाटियों को लवेरा से विक्रम संवत 1745 में बाबरा गांव के फौजदार का पद इनायत हुआ था बाबरा आने वाले प्रथम फौजदार भाटी शंकरदास (लवेरा के भानीदास के वशंज)थे।
कोई टिप्पणी नहीं
एक टिप्पणी भेजें