शनिवार, 24 जून 2017

चम्बल बीहड़ के शेर 1

===चम्बल एक सिंह अवलोकन====

●भाग -२ बागी मान सिंह राठौर●
ताजमहल के कारण प्रशिद्ध हुए उप्र के महानगर आगरा से लगबग ५०किमी की दुरी तय करने पर एक चौराहा आता हे जिससे कुछ ही दुरी तय करने पर मन्दिर पर दृष्टि जाती हे ।
मन्दिर किसी पौराणिक देवता अथवा स्थानीय लोकदेवता का न होकर चम्बल के महाराज की उपाधि प्राप्त मशहूर बागी मान सिंह राठौर का हे ....
यहाँ आज भी विधिवत घण्टे घड़ियालों की मधुर ध्वनि के मध्य एक प्रश्न मष्तिष्क में कोतूहल प्रकट करता हे की अगर मानसिंह एक दुर्दांत डकेत थे फिर इनका इतना सम्मान क्यों ...?
आखिर बो क्या कारण रहे की गाव के एक सीधे साढ़े लांगुरियो(नवदुर्गा के समय गाया जाने बाले लोकगीत ) के प्रेमी ,अखाड़े में लड़ने बाले मान सिंह को रायफल उठानी पडी ?
क्या कहानी थी इन के पीछे जो मप्र०राज०और उप्र० की अंग्रेजी पुलिस से लेकर आजाद भारत की पुलिस महकमे में "मान सिंह " नाम सुनते ही सिहरन दौड़ जाया करती थी ।
बात 1939 के पराधीन हिन्दुस्तान के उप्र राज्य में चम्बल किनारे मप्र की सीमा से सटे गाव खेड़ा राठौर से प्रारम्भ करते हे ।
एक सीधा ,साधा गवरु ,छरहरा १७ वर्षीय नव युवा जिसने हाल ही में ११वि तात्कालिक हायर सेकेण्डरी परीक्षा में कीर्तिमान स्थापित किया ८३प्रतिशत अंक लाना एक बड़ी उपलब्धि मानी जाती थी उस समय .....
किन्तु समय को शायद इस जवान की बहिर्मुखी प्रतिभा को चम्बल के बीहड़ो में प्रशिद्धि की बजाय कुख्याति देना रुचिकर लगा ।
जब बात स्वम के स्वाभिमान गरिमा पर आ पहुचती तो फिर इंसान सहज ही आत्मसम्मान के लिए स्वम शश्त्र उठाता रहा हे ....अन्याय के खिलाफ !!
ऐसी ही कहानी ठाकुर मान सिंह की हे जब स्वम की पुस्तैनी ३७२ बीघे जमीन पर अंग्रेजी हुकूमत के साहूकार की कुदृष्टि पड़ी क्या कोई देख सकेगा की कल जिस माँ को सम्मानपूर्वज पूजता रहा उस पर किसी गुलाम की आमद हो चले .....!
ठिकाने के तत्कालिक साहूकार के द्वारा जबरदस्ती कब्जे को लेकर एक वृहद पंचायत रखी गयी किन्तु अंग्रेजी सरकार में न्याय कैसा...? और नकली खसरे खतौनी को दिखाकर साहूकार को जमीन कब्जे करने को कहा गया ।
अधिकतर चम्बल में बागी बनाएं जाने में पटवारी और ,पुलिस का हाथ रहा जिन्होंने न सिर्फ पक्षय् पात किया बल्कि जुल्म की भी सीमाये तोड़ दी थी ।
फिर चाहे बो अंग्रेजी शाशन हो या आजाद भारत का लोकतन्त्र ,इंसान को रोद्र रूप में लाने के तीन कारण जड़,जोरू,जमीन में यहां जमीन ने मुख्य आधार रहा ।
अपनी पुस्तैनी जमीन को जाते देख परिवारी जनो पर हुए जुल्मो से तंग आकर ,चम्बल की सुरमयी वादियो में एक बागी ने बगावत कर दी और नाम हुआ बागी मानसिंह राठौर जिन्होंने बागियों की मर्यादामय रीती को जीवित रखा ।
गिरोह में स्त्री का प्रवेश वर्जित,
माँ बहिनो का सम्मान
,बच्चों महिलाओ को शपर्ष तक करने की सजा सिर्फ म्रत्यु जेसे कठोर नियम बनाये गए ।
साहूकार को अंग्रेजी हुकूमत का संरक्षण प्राप्त था किन्तु फिर भी जमीन और परिवार का बदला लेनेसे न रोक पाया कोई .....एक अंग्रेज अधिकारी wc खोब तो आगरा छोड़कर भाग निकला था जब उसको त्रिदिवशीय अल्टीमेटम दिया गया ।
मान सिंह गैंग के प्रारम्भिक दिनों में १८बागी हुआ करते थे जिनमे उनके भतीजे तहसीलदार,रुपा पण्डित,लोकमन दीक्षित उर्फ़ लुक्का महाराज और एक गाव का मुस्लिम सुल्ताना प्रमुख सक्रिय भूमिका में थे ।
एक मुस्लिम बागी सुल्ताना एक एक नर्तकी महिला को ले आया जो गिरोह के नियमो के विरुद्ध हुआ
ततक्षण उसको फटकार और दंड देने उद्दृत मानसिंह को नर्तकी महिला ने स्वम की मर्जी से आना गिरोह में शामिल होने की मंशा जारीर की किन्तु नियमो के पावंद मानसिंह ने मृत्यु न देकर सुल्ताना को गिरोह से निष्कासित किया ।
जीनका बाद में अलग गिरोह पुतली बाई प्रथम महिला दस्यु सुंदरी और सुल्ताना के नाम से कुख्यात हुआ ।
एक ् नियमो के पालन की कट्टर प्रतिबद्धता पर किस्सा हे ।
बहुत कुछ अध्यन करने पर विदित होता हे की उस समय स्वतन्त्र भारत की क्रांतिकारी गतिविधिया जोरो पर थी जिसके लिए धन की आवश्यकता पड़ी और क्रान्तिकारियो के सहयोगी बागी मानसिंग को सुचना दी गयी मई आगरा के अंग्रेजी पिट्ठू सेठ के यहाँ डकैती की जाय ।
जिसकी परिणीति में , आगरा के एक सेठ को पत्रिका के माध्यम से सुचना दी गयी।
अंग्रेजी फौजो को साहूकार किहवेलि में उलझाकर बाकी गिरोह सेठ के घर में दाखिल हुआ लूट की गयी ।
किन्तु किसी मनचले डकेत ने सेठ की लड़की को छेड़ दिया ,हो हल्ला होने पर समस्त गिरोह को बही एकत्रित किया गया और सेठ की लड़की से पहिचान कराकर दोसी डाकू को बही तत्क्षण गोली मार दी गयी ...।
बाद में दस्यु मान सिंन्ह ने स्वम इस कृत्य के लिए क्षमा मांगी और स्वम लड़की के पाँव पड कर सारा धन यह बोलकर लोटा दिया की हम धन लूटते हे किसी की अस्मिता नहीं ।
एक बात भी प्रचलित हे मानसिंह के बारे में की
न कभी गरीब सताओ ,न सताई कोई आडी जात
लूटो जो बाँट दियो बेटियो के विह किये खूब भराए भात !! (मामेला)!!
1123 लूट करीब 200 हत्याए (जिसमे 147 बिटिश सेनिक व् अधिकारी शामिल ।) की बजह से स्वतन्त्र भारत की प्रशाशन की नजर में एनिमी 1(a1) लिस्टेड गिरोह अपना विशाल रूप ले चुका था लगबग 400 बागियों का गिरोह 100 से ज्यादा पुलिस मुठभेडे झेल चुका गिरोह धीरे कमजोर हुआ ।
मान सिंह की सलाह पर तहसीलदार सिंह,रूपा,लुक्का पण्डित इत्यादि आत्म समर्पण कर चुके थे ,जबकि स्वम ने न किया ......
एक बार उनको एक पंचायत में बोलते देखकर sn सुब्बाराव इतने प्रभावित हुए की #रोविनहुड की संज्ञा दे दी ।और बोले की आजतक जो समाचार पत्रो ,पत्रिकाओ में पढ़ा सब मिथ्या नजर आता हे ।
मानसिंह डाकू न होकर समाजसेवक ,जनसेवक जेसी छवि हे ।
आखिर कोई कितनी भी अच्छी छवि बनाये समाज में किन्तु गोलियों से प्रारंभ हुई कहानी गोली खाने पर ही समाप्त होती हे ।
२३जुलाई १९५५ को भिंड जिले की बरोही की तिवरिया नामक स्थान पर गोरखा ट्रुप के द्वारा बिछाये गए व्यूह में मानसिंह भी अंतोतगत्वा गति को प्राप्त हुए ।
चम्बल के बीहड़ो के बेताज बादशाह की कहानी पर १९७१ में दारा सिंह द्वारा अभिनीत फ़िल्म "मुझे जीने दो"भी बन चुकी हे ।
और लोककथाओं गीतों में नोटंकियो में इनका चरित्र आज भी सहज दिखाई पड जाता हे ।
क्रमशः
🙏जय भवानी ,जय चम्बल 🙏
सलग्न छाया चित्र मानसिंह राठौर का परिवार ,एवम् उनकी धर्मपत्नी रुक्मणी कँवर का मन्दिर ठिकाना खेड़ा राठौर उप्र०
साभार -जितेन्द्र सिंह तोमर 

कोई टिप्पणी नहीं

एक टिप्पणी भेजें